रुडकी नगर में धर्मशालाएं

DHARMASHALA IN ROORKEE

 

 

रुडकी नगर में विश्राम स्थल / धर्मशाला

रुडकी नगर उच्चतर शिक्षा का केन्द्र है। इसके अतिरिक्त, रुडकी नगर हरिद्वार से केवल 30 किलोमीटर दूर है। जब किसी पर्व पर हरिद्वार में पैर रखने को भी स्थान नहीं मिलता, जैसे कुम्भ पर्व पर, उस समय यात्री रुडकी में रुक कर हरिद्वार की यात्रा करना उपयुक्त समझते हैं। रुडकी नगर सेना की छावनी भी है और आए दिन वहां भर्तियां होती रहती हैं। विश्राम स्थलों का इतना अभाव है कि भरी सर्दी में नौकरी के इच्छुक युवकों को खुले आसमान में रात गुजारनी पडती है। रुडकी के बी.टी. गंज मुहल्ले में स्थित श्री सनातन धर्म रक्षिणी सभा द्वारा संचालित धर्मशाला नाममात्र के शुल्क पर यात्रियों के विश्राम के लिए महत्त्वपूर्ण सुविधा प्रदान करती है  

धर्मशाला के व्यवस्थापक पण्डित श्री लखमी चन्द्र शर्मा हैं।

 

पण्डित जी का परिचय

पण्डित जी मूल रूप से सरधना, मेरठ के निवासी हैं। उनकी आयु इस समय लगभग 82 वर्ष है। जब जमींदारी प्रथा समाप्त हुई, उस समय पण्डित जी को कोश विभाग में अमीन की नौकरी मिली। अमीन का काम सरकारी करों तथा अन्य देयों की वसूली करना होता है। किन्हीं कारणों से पण्डित जी को तथा उनके परिवार वालों को यह नौकरी पसन्द नहीं थी और उन्होंने इससे त्यागपत्र दे दिया। तब उन्हें उसी विभाग में लिपिक का अस्थायी पद दिया गया लेकिन वह स्थायी नहीं बन सका और जल्दी ही वह पद छोडना पडा। तब पण्डित जी को एक विद्यालय में अध्यापन का कार्य मिला। कुछ वर्षों बाद वह विद्यालय बंद हो गया और पण्डित जी के ऊपर फिर से नौकरी ढूंढने का भार आ गया। उस समय पण्डित जी की आयु 40 वर्ष हो चुकी थी और नौकरी छूटने से वह बहुत सदमे में थे कि अब पुनः नौकरी कैसे मिल पाएगी। यह लगभग सन् 1972 की बातें हैं। इतने में ही जैसे ही उनके शुभचिन्तकों को पण्डित जी के मानसिक अवसाद का पता चला, उन्होंने एक इण्टरमीडिएट कालेज में पण्डित जी के अध्यापन का प्रबन्ध कर दिया। उस समय पण्डित जी की शैक्षिक योग्यता मात्र इण्टरमीडिएट थी। शुभचिन्तकों ने प्रोत्साहित किया और पण्डित जी ने क्रमशः बी.ए. पास कर लिया। और पण्डित जी अभी भी उस सेवाकार्य के आधार पर पेन्शन प्राप्त कर रहे हैं।

धर्मशाला की व्यवस्था

धर्मशाला में टेलीफोन की कोई व्यवस्था नहीं है। कोई भी अनजान व्यक्ति यहां ठहरने को आ जाए तो अपना परिचय पत्र दिखाकर ठहरने के लिए स्थान तो प्राप्त कर ही लेता है। अन्यत्र इतनी सुविधा नहीं है। धर्मशाला में बिस्तरों का कोई समुचित प्रबन्ध नहीं है। प्रायः टैन्ट हाउस से किराए पर बिस्तर मंगाए जाते हैं लेकिन किसी यात्री को बिस्तर सुलभ हो पाएगा या नहीं, यह कहना कठिन है। हरिद्वार जाने के लिए जो यात्री धर्मशाला में ठहरते हैं, उनकी व्यवस्था अधिकांश रूप में स्थानीय पुरोहित करते हैं जो धर्मशाला में उपस्थित रहते हैं। धर्मशाला के शौचालयों का उपयोग सारे दिन बाजार के लोगों तथा ग्राहकों द्वारा होता रहता है। शौचालय पहली मंजिल पर एक कोने में स्थित हैं। शौचालय में जरा सी भी गंदगी होने पर मूत्र की दुर्गन्ध फैलने लगती है और ऊपर के कमरों में रुकना कठिन हो जाता है। फिर, गर्मी के दिनों में कमरे का पंखा ठीक चल पाएगा, यह कहना भी कठिन है।

विपिन कुमार

माघ कृष्ण द्वादशी, विक्रम संवत् 2070

आजकल पण्डित जी का स्वास्थ्य ठीक नहीं होने से धर्मशाला की व्यवस्था उनके पुत्र श्री अनुज शर्मा (मो. 09760820337) देख रहे हैं।

रुडकी की अन्य धर्मशालाएं—

मो. 09997621940 – प्रायः स्थान नहीं मिलता।

दिगम्बर जैन धर्मशाला – प्रायः स्थान नहीं मिलता। संकुचित वृत्ति का आभास होता है।

अग्रवाल धर्मशाला – अभी ज्ञात नहीं

हरमिलापी धर्मशाला - अभी ज्ञात नहीं

दिल्ली की धर्मशालाओं की सूचना –

http://north.kisan.in/hindi/index.php/exhibition1/services/12-2014-10-28-12-17-23/112-dharmashala-in-pune1-3

 

http://www.justdial.com/Delhi/Dharamshalas/ct-43304


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Last modified: Tuesday March 03, 2015.