पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Goajaka - Chandrabhaanu) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar Goajaka - Gopa ( words like Gokarna, Gokula, Gotra, Godaavari, Gopa etc) Gopa - Gomati ( Gopaala, Gopaalaka, Gopi, Gobhila, Gomati etc.) Gomati - Govardhana ( Gomukha, Golaka, Goloka, Govardhana etc. ) Govardhana - Gau ( Govinda, Gau/cow etc.) Gau - Gautama (Gau / cow etc. ) Gautama - Gauri ( Gautama, Gautami, Gauramukha, Gauri etc.) Gauri - Grahana (Granthi / knot, Graha/planet, Grahana / eclipse etc.) Grahee - Ghantaanaada (Graama / village / note, Graamani, Graaha / corcodile, Ghata / pitcher, Ghatotkacha, Ghantaa etc.) Ghantaanaada - Ghorakhanaka (Ghrita / butter, Ghritaachi etc. ) Ghosha - Chakra (Ghosha / sound, Chakra / cycle etc. ) Chakra - Chanda ( Chakrapaani, Chakravaak, Chakravarti, Chakshu / eye, Chanda etc.) Chanda - Chandikaa (Chanda / harsh, Chanda - Munda, Chandaala, Chandikaa etc.) Chandikaa - Chaturdashi (Chandi / Chandee, Chatuh, Chaturdashi etc.) Chaturdashi - Chandra ( Chaturvyuha, Chandana / sandal, Chandra / moon etc. ) Chandra - Chandrabhaanu ( Chandrakaanta, Chandragupta, Chandraprabha, Chandrabhaagaa etc. )
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Puraanic contexts of words like Gau / cow are given here. गौ अग्नि ६५.१५ ( गृह प्रवेश के समय गौ पूजा की विधि ), २१०.३० ( विभिन्न प्रकार की गौ दान की महिमा ), २१३( स्वर्ण निर्मित कामधेनु तथा कपिला गौ के दान का माहात्म्य ), २३२.२१ ( गौ द्वारा शुभाशुभ शकुन का ज्ञान ), २९२ ( गौ माहात्म्य तथा गौ - चिकित्सा / गवायुर्वेद ), ३०२.२९ ( गौ समुदाय के रक्षक मन्त्र का उल्लेख ), कूर्म १.७.५५ ( ब्रह्मा के उदर से गौ के प्राकट्य का उल्लेख ), १.१६.१०४ ( गौतम आश्रम में मायामयी कृष्णा गौ के मरण का उल्लेख ), २.२६.४५ ( गौ दान से बृ|ध्न विष्टप स्वर्ग प्राप्ति का उल्लेख ), गणेश १.३.४० ( पङ्क से गौ की रक्षा का निर्देश ), गर्ग २.१० ( कृष्ण द्वारा वृन्दावन में गौ चारण तथा गौ शोभा का वर्णन ), ३.९.२१ ( कृष्ण के मन से गौ के प्राकट्य का उल्लेख ), गरुड २.४२ ( गौ दान की महिमा ), गर्ग ३.९.२१( कृष्ण के मन से गायों व वृषभों के प्राकट्य का उल्लेख ), देवीभागवत ११.११.७ ( चतुर्वर्ण अनुसार गौ विभाग ), नारद १.१२२.३३ ( भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी में करणीय गो त्रिरात्र व्रत की विधि व फल ), १.१२४.१३ ( आषाढ पूर्णिमा में करणीय गोपद्म व्रत की विधि तथा फल ), पद्म १.३.१०५ ( ब्रह्मा के उदर से गौ की सृष्टि का उल्लेख ), १.९.४३( पितर - कन्या, साध्यों की पत्नी सुकन्या बनना ?), १.१८.२४४ ( पुष्कर में स्नान कर मन्त्रपूत गो दान से मोक्षप्रद लोकों की प्राप्ति का उल्लेख ), १.४८.१२५ ( ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न तेज से गौ की उत्पत्ति, गौ - माहात्म्य, पूजा - विधि, कपिला आदि गोदान की विधि, दान फल का वर्णन ), ३.२६.४६ ( गौ भवन तीर्थ में अभिषेक से सहस्र गोदान फल प्राप्ति का उल्लेख ), ४.२३.१२ ( कार्तिक शुक्ल द्वादशी को गोमूत्र सेवन का निर्देश ), ४.२४.६ ( गोचर्म मात्रभूमि दान का महत्त्व तथा गोचर्म के परिमाण का कथन ), ५.३०.२२ ( जाबालि द्वारा ऋतम्भर राजा को सन्तान प्राप्ति हेतु गौ -पूजा तथा गो - माहात्म्य का कथन ), ६.६.२२ ( बल असुर के एक अङ्ग के गो नग पर गिरने का उल्लेख ), ६.१४४ ( गो ह्रद में स्नानादि का फल ), ६.१६३ ( गो तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : गो तीर्थ में गायों द्वारा स्नान से शुक्लता प्राप्ति, मनुष्यों द्वारा स्नान से मातृ ऋण से मुक्ति ), ६.२०२+ ( दिलीप व सुदक्षिणा का पुत्र प्राप्ति हेतु वसिष्ठ आश्रम में गमन, वसिष्ठ द्वारा गो सेवा का उपदेश, गो सेवा से पुत्र प्राप्ति कारक वर प्राप्ति का वर्णन ), ६.६६.७० ( समुद्र मन्थन से ५ गायों की उत्पत्ति, नन्दिनी गौ की पूजा तथा अर्घ्य प्रदान विधि ), ब्रह्म २.५.५७ ( विनायक द्वारा प्रेरित करने पर पार्वती - सखी जया का गौ रूप धारण कर गौतम के आश्रम में गमन, मायामयी गौ का आश्रम में मरण, गौतम का दुःखी होना, उपाय रूप में महेश्वर के जटाजूट में स्थित जल से सिंचन की कथा ), २.२१ ( गौ पर अत्याचार के कारण नन्दी द्वारा मर्त्य लोक तथा स्वर्गलोक से गौ का हरण, देवों की प्रार्थना पर नन्दी द्वारा पुन: गौ का वर्धन ), २.६१.२६ ( दैत्यों द्वारा देव -गायों का हरण, विष्णु द्वारा बाण सन्धान पूर्वक दैत्यों का क्षय, गौ प्राप्ति स्थान की गो तीर्थ नाम से प्रसिद्धि ), ब्रह्मवैवर्त्त १.५.४४ ( कृष्ण के लोमकूपों से गौ की उत्पत्ति का उल्लेख ), २.२७.५५ ( गोदान के फल का कथन ), २.३०.१७२ ( गोहत्या पाप प्रापक कर्मों का वर्णन ), ४.२१.९३ ( कृष्ण द्वारा इन्द्र याग की अपेक्षा गौ के महत्त्व का कथन ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.१९८ ( गोरक्ष : पृथु से पूर्व सस्योत्पत्ति, गोरक्ष, कृषि आदि के अभाव का उल्लेख ), २.३.१.७७ ( सोमपा पितर - कन्या, शुक्र - पत्नी, शण्डार्क आदि की माता ), २.३.१३.१२९ ( गोगोष्ठ : श्राद्ध हेतु गोगोष्ठ की प्रशस्तता का उल्लेख ), २.३.२८.५७ ( कार्त्तवीर्य के मन्त्री चन्द्रगुप्त द्वारा जमदग्नि की गौ के हरण का परामर्श, जमदग्नि का वध तथा गौ हरण का वृत्तान्त ), २.३.७१.१०८( गान्दिनी कन्या द्वारा गर्भ से बाहर निकलने के लिए प्रतिदिन गौ दान की शर्त का कथन ), भविष्य १.१८७.४७ ( समुद्र मन्थन से नन्दा, सुभद्रा, सुरभी, सुमना तथा शोभनावती नामक ५ प्रकार की गायों की समुत्पत्ति, गौ का माहात्म्य ), २.३.२ ( गोचर भूमि के उत्सर्ग की महिमा ), २.३.१७ ( गोप्रचार प्रतिष्ठा विधि का वर्णन ), ३.४.२५.१९६ ( गौ के कर्म भूमि का प्रतीक होने का उल्लेख ), ४.१९ ( गोष्पद तृतीया व्रत के माहात्म्य का वर्णन ), ४.६९ ( गोवत्स द्वादशी व्रत के माहात्म्य का वर्णन ), ४.६९.२४ ( गौ में देव प्रतिष्ठा का वर्णन ), ४.९४.६३ ( अनन्त चर्तुदशी व्रत में गौ के निष्फल भूमि रूप होने का कथन ), ४.१४१.५४ ( शनि के लिए कृष्ण गौ के दान का उल्लेख ), ४.१५१+ ( गौ दान विधि का वर्णन, प्रत्यक्ष धेनु, तिल धेनु, जलधेनु, लवणधेनु, कांचन धेनु, रत्न धेनु, उभयमुखी धेनु दान का वर्णन ), ४.१५६.१६ ( गौ शरीर में देव विन्यास का कथन ), ४.१५९ ( सहस्र गौ प्रदान विधि का वर्णन ), ४.१६१ ( कपिला गौ दान के माहात्म्य का वर्णन ), भागवत ४.१७.१४ ( पृथु के क्रोध से डरकर पृथ्वी का गौ रूप धारण कर भागना, पृथु व देव, पितर आदि अन्यान्य योनियों द्वारा गौ दोहन का वर्णन ), मत्स्य १३.५८ ( गोदान के समय सती देवी के नामों के पाठ से ब्रह्मपद प्राप्ति का उल्लेख ), १०.१२ ( भयभीत पृथ्वी का गो रूप धारण कर पलायन, गो रूपा पृथ्वी के दोहन का वृत्तान्त ), १५.१० ( शुक व पीवरी - कन्या कृत्वी का एक नाम, ब्रह्मदत्त -माता ),१५.१५ ( पितर - कन्या, शुक्र - पत्नी ), २७८ ( गो सहस्र दान विधि का वर्णन ), लिङ्ग १.१३.५ ( पीतवासा कल्प में ध्यानस्थ ब्रह्मा के समक्ष माहेश्वरी गौ के प्रकट होने का वर्णन ), १.१६.१९ ( ब्रह्मा द्वारा शिव से विश्वरूपा गौ के विषय में पृच्छा ), २.३८ ( गौ सहस्र दान विधि ), वराह १६.११ ( देवों द्वारा गोमेध यज्ञ का प्रारम्भ, दैत्यों द्वारा गोमेध की गायों का अपहरण, दैत्य - सेना के निहत होने पर गायों के मोचन का वर्णन ), ७१.२४ ( गौतम आश्रम में मायामयी गौ के मरण का प्रसंग ), १४७.२९ ( और्व शाप से सन्तप्त शम्भु के ताप की शान्ति हेतु सुरभि गौओं का अवतारण, गौ दुग्ध सिंचन से ताप की शान्ति ), २०६.२९ ( गौ शरीर में देवों की स्थिति का कथन ), वायु २३.५( गौ रूपी रौद्र गायत्री की उत्पत्ति तथा स्वरूप का वर्णन ), २३.६४/१.२३.५९( श्वेत वर्णा गौ रूपी ब्रह्म गायत्री तथा लोहित वर्णा गौ रूपा गायत्री का कथन ), ५२.१२ ( शरद ऋतु में सूर्य रथ पर अधिष्ठित ऋषियों में से एक ), ७३.३६( कव्य पितरों की कन्या, शुक्र - पत्नी ), ९३.१४ ( गो : काकुत्स्थ - पुत्री, यति - पत्नी, चन्द्र वंश ), विष्णु १.५.४८ ( ब्रह्मा के उदर से गो की उत्पत्ति का उल्लेख ), ५.१.१४ ( सूर्य रश्मि का वाचक शब्द ), विष्णुधर्मोत्तर २.४२ ( गौ माहात्म्य का वर्णन ), २.४३ ( गौ चिकित्सा का वर्णन ), २.४४ ( गौ शान्ति कर्म का वर्णन ), ३.९९ ( प्रतिमा प्रतिष्ठा के अन्तर्गत पञ्चगव्य संस्कार का वर्णन ), ३.२९१( गौ माहात्म्य तथा शुश्रूषा का वर्णन ), ३.३०१.३१( गौ प्रतिग्रह की संक्षिप्त विधि ), ३.३०६ ( गौ दान के फल का निरूपण ), शिव ४.६ ( गौ व वत्स संवाद के अन्तर्गत वत्स के ताडन पर गौ को दुःख, प्रतिकार स्वरूप गौ द्वारा गृहस्वामी - पुत्र का ताडन, गृहस्वामी पुत्र - वध से प्राप्त कृष्णत्व के नर्मदा स्नान से निवारण का वर्णन ), ४.२५.२९ ( गणेश द्वारा गौ बनकर सस्य का भक्षण, गौतम ऋषि द्वारा गौ के निवारण पर मायामयी गौ के मरण का वृत्तान्त ), ७.२.३१.१८३ (शिव महास्तोत्र जप से गोहत्या रूप पाप से मुक्ति का उल्लेख ), स्कन्द १.२.४.७८( गौ के दान का उत्तम कोटि के दानों में वर्गीकरण ), २.४.३.४१ ( रुद्र शाप के कारण गायों द्वारा विश्व भक्षण का उल्लेख ), २.४.३.४१टीका ( विष्णु व ब्रह्मा की स्पर्धा में मिथ्या साक्षी से गौ के अपवित्र मुख होने का कथन ), २.४.४.८० ( गोरज से वायव्य स्नान का उल्लेख ), ४.१.२.७७ ( गौ माहात्म्य, शृङ्गाग्र में सर्वतीर्थ व खुराग्र में सर्व पर्वतों की स्थिति का कथन ), ४.२.८३.७१ ( गोव्याघ्रेश्वर तीर्थ की महिमा का उल्लेख ), ४.२.८४.३६ ( गोप्रतारेश्वर तीर्थ की महिमा का उल्लेख ), ४.२.९७.९ ( गोप्रेक्ष लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.३.१९.५ ( प्रलय के पश्चात् एकार्णव में गौ द्वारा मार्कण्डेय ऋषि की रक्षा का वर्णन ), ५.३.३९.२८ ( गौ के शरीर में देवों की स्थिति का कथन ), ५.३.५१.५६ ( गर्भ मोचन से पूर्व गौ के पृथिवी रूप होने का कथन ), ५.३.५६.१२० ( गो दान से त्रिविष्टप की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.८३.१०३ ( गोदान महिमा तथा गौ के अङ्गों में देवों की स्थिति का वर्णन ), ५.३.१८१.१६ (गायों के दूर प्रचरण से नष्ट होने का उल्लेख ), ६.१४ ( अज्ञान भाव से की गई चमत्कारपुर की प्रदक्षिणा से गौ तथा गौरक्षक के जन्मान्तर में मन्त्री व राजा बनने तथा मुक्त होने का वृत्तान्त ), ६.१५२.२५ ( अर्जुन द्वारा तस्करों द्वारा अपहृत गायों को मुक्त कराने का उल्लेख ), ६.१८१.६६ ( ब्रह्मा के यज्ञ हेतु लाई गई गोपकन्या का गोमुख से प्रवेश व गो गुह्य से आकर्षण द्वारा पवित्रीकरण का कथन ), ६.२५९.४० ( गोलोक के गौ - समूह के नाम का कथन ), ७.१.३२.४४ ( दधीचि के त्यक्त कलेवर को मांसादि से मुक्त करने हेतु देवों द्वारा गोलोक से गौओं का आवाहन, नन्दा, सुभद्रा प्रभृति पांच गोमाताओं द्वारा कलेवर की शुद्धि का कथन ), ७.१.३३८.४१ ( आपस्तम्ब प्रोक्त गौ महिमा का वर्णन ), ७.३.२९ ( राजा सुप्रभ द्वारा मृगी का वध, मृगी द्वारा राजा को व्याघ्र बनने का शाप, कपिला गौ से वार्तालाप पर शाप से मुक्ति का वृत्तान्त ), हरिवंश १.१८.५८ ( सुकाल नामक पितरों की मानसी कन्या एकशृङ्गा के स्वर्ग में गौ नाम से विख्यात होने का उल्लेख ), १.५५.२१ ( कश्यप का यज्ञावसर पर वरुण से उनकी पयोदा गौएं मांगना, यज्ञ समाप्ति पर भी कश्यप के गौ पर बलाधिकार का कथन ), २.१२७.४८ (बाणासुर की गायों के दुग्धपान से वृद्धत्व के नाश तथा अजरता प्राप्ति का उल्लेख ; कृष्ण द्वारा बाणासुर की दिव्य गायों को प्राप्त करने के उद्योग में असफलता ), २.१४७.४४( सत्यभामा की कामना पूर्ति हेतु कृष्ण द्वारा बाणासुर की दिव्य गायों की प्राप्ति का प्रयत्न, वरुण की प्रतिज्ञा के कारण प्रयत्न का त्याग ), महाभारत वन २००.६९(द्विमुखी गौ की कल्पना), २००.२८(सूर्य - सुता होने का उल्लेख), द्रोण ९३.४३, कर्ण ३८.१०, ४२.४५, अनुशासन ५०, ६६, ६९, ७८, १०२.४४, १२६, आश्वमेधिक २१.२२( गौ रूपी दिव्य व अदिव्य वाक् का प्रतिपादन ), वा.रामायण ७.२३.२१ ( वरुणालय में प्रवेश करने पर रावण द्वारा सुरभि गौ के दर्शन का उल्लेख ), ७.२३.२८ ( रावण - आगमन का समाचार सुनकर वरुण के पुत्र - पौत्रों के साथ गौ तथा पुष्कर नामक सेनाध्यक्षों के भी आने का उल्लेख ), कथासरित् ६.१.१११ ( दुर्भिक्ष से क्षुधित सात ब्राह्मण शिष्यों द्वारा गाय को मारकर क्षुधा शान्त करने की कथा ), १०.५.४४ ( मूर्ख गौदोहक द्वारा एक साथ बहुत सा दुग्ध प्राप्त करने की इच्छा से गोदोहन त्याग की कथा ), लक्ष्मीनारायण १.३२.६ ( गो महिमा का वर्णन ), १.२२२ ( राजा नृग द्वारा गौतम नामक विप्र को गौ का दान, गौ का पलायन कर पुन: राजा के गौगोष्ठ में गमन, राजा द्वारा पुन: उसी गौ को सोमशर्मा को दान, गौदान विपर्यास से विप्र शाप वश राजा को कृकलास योनि की प्राप्ति का वर्णन ), १.३६५.२९ ( मेरु पर गौ रक्षार्थ देवशुनी सरमा की नियुक्ति, असुरों द्वारा गौ का हरण, सरमा के पातिव्रत्य प्रभाव से दैत्यों का भस्मीभूत होना तथा गौ रक्षण का वृत्तान्त ), २.८.११ ( बाल कृष्ण द्वारा मङ्गला गौरी नामक कामधेनु का दुग्धपान, दिव्य गायों द्वारा कृष्ण को दुग्ध पिलाने हेतु प्रार्थना, कृष्ण द्वारा कोटि स्वरूप धारणकर कोटि गायों का दुग्ध - पान, राक्षस - पत्नियों का भी गौ रूप धारण कर कृष्ण को दुग्ध - पान, कृष्ण द्वारा दुग्ध के साथ -साथ प्राणों का भी पान, पुन: राक्षसियों के प्राणदान हेतु प्रार्थना करने पर कृष्ण द्वारा मुक्ति प्रदान करने का वर्णन ), २.१५.२६ ( गौ के अङ्गों में देवादि की स्थिति ), २.७७.३५ ( गोदान से राजा के पापों का नाश परन्तु गो गृहीता के पापयुक्त होने का उल्लेख ), ३.१८.१० ( गौदान के धन दान से ऊपर व कन्या दान से निम्नतर होने का उल्लेख ), ३.१०१ ( गोदान से प्रेत का उद्धार, गो माहात्म्य का वर्णन ), ३.१०२.२४( गायों द्वारा चञ्चला लक्ष्मी को शकृत में स्थान देने का वृत्तान्त ), ३.११२.४ ( गो धेनु दान हेतु पात्रता अपात्रता विचार, गो के अभाव में घृत धेनु आदि का दान, गोदान के माहात्म्य का वर्णन ), ३.१२७.५८ ( गोसहस्र महादान विधि का निरूपण ), ४.४५.३१ ( नारायण सरोवर के तट पर श्वेत लोहिता नामक दिव्या गौ का आगमन, गौ के प्रार्थना करने पर कृष्ण द्वारा सरस्वती धेनु सारस्वत तीर्थ के रूप में स्थापना का कथन ), ४.६७.१ ( गोवार नामक गोपालक द्वारा गौ दुग्ध की चोरी से मार्जार बनना, कृष्ण - प्रसाद - भोजन से गोवार की मुक्ति की कथा ), ४.९०.५ ( सर्वधर्मादि वर्जित गृहस्थ के लिए गोदान रूप मोक्ष साधन का वर्णन ), सामरहस्योपनिषद २७५पृ. ( गायों के २ भेदों संसिद्धा व साधनसिद्धा; व्रजमण्डल में संसिद्धा ) ।gau/cow चित्तवृत्तियों को गायों के रूप में कल्पित किया गया है । वे गाएं ज्ञान का उदक पीती हैं, क्रिया रूपी घास चरती हैं, भावना रूपी दूध देती हैं। अथवा, आत्मा परमात्मा से बंधने पर जो ज्ञान की शक्ति प्राप्त करता है , वह गौ है । - फतहसिंह This page was last updated on 04/11/10. |