पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Phalabhooti to Braahmi ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Bandi, Bandha / knot, Babhru, Barkari, Barbara etc. are given here. बधीर लक्ष्मीनारायण २.५७.४७(यम - दूत बधीर द्वारा महाशैल का रूप धारण कर असीरक व पेगन् दैत्यों के वध का कथन ) बन्दी गर्ग २.२०.१०१(गोपी, राधा को ताटङ्क भेंट), स्कन्द २.८.८.२४(बन्दी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य : बन्दी देवी के स्मरण मात्र से निगडादि बन्धन से मुक्ति), ४.२.८३.८४(बन्दी तीर्थ का माहात्म्य), ४.२.९७.१३६(बन्दीश्वर कुण्ड का संक्षिप्त माहात्म्य), महाभारत अनुशासन ४८.१२(बन्दी सन्तान की परिभाषा), लक्ष्मीनारायण ४.७३(जयमान नामक बन्दी द्वारा वज्रविक्रम नृप का कृष्ण से तादात्म्य स्थापित कर स्तुति गान, राजा को विवेक प्राप्ति आदि), कथासरित् १२.४.२३७(मनोरथसिद्धि नामक बन्दी की सहायता से राजा को हंसावली की प्राप्ति ) bandee/ bandi बिन्दुला लक्ष्मीनारायण १.४५४.१७(भ्रष्ट आचार वाले विदुर द्विज की सती पत्नी बिन्दुला द्वारा पति आज्ञा के पालन से पातिव्रत्य व्रत की रक्षा का वृत्तान्त ) ‹ बन्ध वायु १०२.५८/२.४०.५८(अज्ञान के हेतु ३ बन्धों का कथन), स्कन्द ४.१.४१.७९, ४.१.४१.१८०(काशी में उड्डीयान, जालन्धर व मूल बन्धों के स्वरूप का कथन), योगवासिष्ठ ३.१(बन्ध हेतु के अन्तर्गत द्रष्टा व दृश्य की सत्ता के बन्धन होने का वर्णन), ३.३(बन्ध हेतु वर्णन नामक सर्ग), लक्ष्मीनारायण ४.२६.६२(एकरूप, बहुरूप आदि कृष्ण की शरण से बन्ध नाश का उल्लेख ), द्र. बलबन्ध, मणिबन्ध, सेतुबन्ध bandha बन्धन अग्नि ३४८.७(उद्बन्धन अर्थ में ठ अक्षर का प्रयोग), गर्ग ७.१२(बन्धन से मुक्ति का उपाय : अगस्त्य - प्रद्युम्न संवाद), मत्स्य २२७.२०८(बन्धन से पलायन करने पर अष्ट गुना दण्ड का विधान), वायु १०१.१५४/ २.३९.१५४(बन्धन रक्षक? द्वारा प्राप्त नरक यातनाओं का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ४.४४.६१(विभिन्न प्रकार के बन्धनों के नाम), कथासरित् ६.८.५८(अपनी ही उद्दण्डता के कारण कलिङ्गसेना को बन्धकी/व्यभिचारिणी विषेषण की प्राप्ति ) bandhana बन्धु ब्रह्माण्ड ३.४.१.८५(रोहित संज्ञक गण के १० देवों में से एक), भागवत ९.२.३०(वेगवान् - पुत्र, तृणबिन्दु - पिता, मरुत्त वंश), वायु १००.९०/ २.३८.९०(रोहित संज्ञक गण के १० देवों में से एक), हरिवंश २.८१.१ (गुणसम्पन्न बन्धु - बान्धवों की प्राप्ति हेतु सप्तमी एकाशना), ऋग्वेद ३.६०.१ (सायण टीका - कर्म), योगवासिष्ठ ३.११४.२४(संकल्प के परम बन्धु होने का उल्लेख ), द्र. पद्मबन्धु, सुबन्धु bandhu बन्धुजीव वामन १७(बन्धुजीव तरु की स्कन्द से उत्पत्ति), ६५.४४(वृक्ष, वानर द्वारा जल में प्रक्षेपण), लक्ष्मीनारायण २.२७.१०४(बन्धुजीव की स्कन्द से उत्पत्ति का उल्लेख ) bandhujeeva/ bandhujiva बन्धुदत्त वामन ५७.९०(वाजिशिर द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण), ५८.६७ (बन्धुदत्त द्वारा शूल से असुर संहार), ७३१०३?, बन्धुमती कथासरित् २.६.६७(वत्सराज द्वारा राजपुत्री बन्धुमती से गान्धर्व विधि से विवाह), ९.६.१९८(महीपाल - पत्नी ) बन्धुमान् ब्रह्माण्ड २.३.८.३६(केवल - पुत्र, वेगवान् - पिता, मरुत्त वंश), २.३.६१.९(वही), २.३.७१.८७(भङ्गकार व नरा के २ पुत्रों में से एक, अक्रूर द्वारा वध का उल्लेख), भागवत ९.२.३०(केवल - पुत्र, वेगवान् - पिता, मरुत्त वंश), वायु ९६.८५/२.३४.८५(भङ्गकार व नरा के २ पुत्रों में से एक, अक्रूर द्वारा वध का उल्लेख ) bandhumaan बन्धुमित्र कथासरित् ९.५.२०७(विद्याधर का मनुष्य योनि में धारित नाम, राजा कनकवर्ष का प्रत्युपकार ) बन्धूक अग्नि ८१.४९(वशीकरण आकर्षण हेतु होमद्रव्यों में से एक), नारद १.६७.६१(बन्धूक पुष्प को शिव को अर्पण का निषेध), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.३५(ओष्ठ वर्ण के सौन्दर्य हेतु राधेश्वर को बन्धूक पुष्प अर्पण का उल्लेख ) bandhooka/ bandhuuka/ bandhuka बभ्रु पद्म १.६.६७(सम्पाति - पुत्र, गृध्र, शीघ्रग - भ्राता), ब्रह्म १.१३.१४८(बभ्रुसेतु : द्रुह्यु - पुत्र, अङ्गारसेतु - पिता, ययाति वंश), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१३(देवावृध द्वारा पर्णाशा नदी से बभ्रु पुत्र प्राप्त करने का वृत्तान्त, बभ्रु के चरित्र की प्रशंसा), २.३.७१.८१(अक्रूर की बभ्रु संज्ञा, बभ्रु द्वारा स्यमन्तक मणि से प्राप्त धन से यज्ञ करने तथा स्यमन्तक मणि को कृष्ण से पुन: प्राप्त करने का वृत्तान्त), भागवत ९.२३.१४(द्रुह्यु - पुत्र, सेतु - पिता, ययाति वंश - द्रुह्योश्च तनयो बभ्रुः सेतुः तस्यात्मजस्ततः ॥), ९.२४.२(रोमपाद - पुत्र, कृति - पिता, विदर्भ वंश- रोमपादसुतो बभ्रुर्बभ्रोः कृतिरजायत॥), ९.२४.९(देवावृध व देवावृध - पुत्र बभ्रु के चरित्र की प्रशंसा, विदर्भ वंश), १२.७.३(अथर्व संहिताकार शुनक के २ शिष्यों में से एक - बभ्रुः शिष्योऽथांगिरसः सैन्धवायन एव च ।), मत्स्य ६.३५(पक्षी, सम्पाति – पुत्र, अन्य? नाम शीघ्रग - सम्पातिपुत्रो बभ्रुश्च शीघ्रगश्चापि विश्रुतः।।), ४४.५८(देवावृध व पर्णाशा - पुत्र , महिमा), १९९.७(कश्यप कुल के गोत्रकार ऋषियों के गण में एक), वायु ९६.१५/२.३४.१५(देवावृध द्वारा सावित्री से बभ्रु पुत्र प्राप्त करने का वृत्तान्त, बभ्रु के चरित्र की प्रशंसा), ९९.७(द्रुह्यु के २ पुत्रों में से एक, रिपु - पिता), विष्णु ३.६.१२(शुनक के २ शिष्यों में से एक, शुनक से अथर्ववेद संहिता प्राप्ति का उल्लेख), ४.१२.३९(रोमपाद - पुत्र, धृति - पिता), ४.१३.५(देवावृध - पुत्र बभ्रु की प्रशंसा में श्लोक - यथैव शृणुमो दूरात्संपश्यामस्तथांतिकात्। बभ्रुः श्रेष्ठो मनुष्याणां देवैर्देवावृधस्समः॥), शिव ५.३६.५७(मनु - पुत्र वृषघ्न द्वारा गोरक्षा में शार्दूल शंका में बभ्रु का वध, शाप प्राप्ति - व्युष्टायां निशि चोत्थाय प्रगे तत्र गतो हि सः ।।अद्राक्षीत्स हतां बभ्रुं न व्याघ्रं दुःखितोऽभवत् ।।), स्कन्द १.२.५४.१४(महीसागर यात्रा में कृष्ण के सहचरों में से एक), ५.१.५६.५४(शनि के नामों में से एक), ७.१.२३७.८(इयं स्त्री पुत्रकामस्य बभ्रोरमिततेजसः ॥ ऋषयः साधु जानीत किमियं जनयिष्यति ॥), हरिवंश १.३७.११(देवावृध व पर्णाशा - पुत्र), वा.रामायण ४.४१.४३(पांच गन्धर्वराजों में से एक, ऋषभ पर्वतस्थ वन का रक्षक - तत्र गन्धर्वपतयः पञ्चसूर्यसमप्रभाः। शैलूषो ग्रामणीर्भिक्षुः शुभ्रो बभ्रुस्तथैव च॥), लक्ष्मीनारायण १.५६२.६२(बभ्रु द्वारा पिता के श्राद्ध में ऋषियों को आमिष भोजन प्रस्तुत करने पर भारद्वाज के शाप से व्याघ्र बनना, बभ्रु द्वारा ब्राह्मणों को ब्रह्मराक्षस बनने का शाप, नर्मदा में स्नान से मुक्ति ), द्र. बाभ्रव्य babhru बभ्रवे – विश्वस्य भर्त्रे – ऋ.२.३३.८सायण भाष्य, अनवभ्रराधसः – अभ्रष्टहविरादिधनाः – ऋ. १.१६६.७सायणभाष्य द्र. बभ्रु उपरि वैदिकसंदर्भाः बभ्रु-(१) एक वृष्णिवंशी यादव, जो रैवतक पर्वत के महोत्सव में सम्मिलित थे ( आदि० २१८ । १० ) । यदुवंशियों के सात प्रधान महारथियों में एक ये भी थे । (सभा० १४ । ६० के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। द्वारका जाते समय इन तपस्वी बभ्रु की पत्नी को शिशुपाल ने हर लिया था (सौवीरान्प्रतियातां च बभ्रोरेष तपस्विनः। भार्यामभ्यहरन्मोहादकामां तामितो गताम्।।-सभा० ४५ । १०)। इयं स्त्री पुत्रकामस्य बभ्रोरमिततेजसः। ऋषयः साधु जानीत किमियं जनयिष्यति।।(मौसल २.६) इन्होंने भी श्रीकृष्ण के पास ही बने हुए पेय पदार्थ को पीया था (मौसल० ३ । १६-१७)। व्याध के बाण से लगे हुए एक मूसल द्वारा इनकी मृत्यु हुई थी (कूटे युक्तं मुसलं लुब्धकस्य।। ततो दृष्ट्वा निहतं बभ्रुमाह - मौसल. ४ । ५-६ ) । शान्तिपर्व के ८१ । १७ में अक्रूर के लिये भी बभ्रु शब्द का प्रयोग आया है - बभ्रूग्रसेनतो राज्यं नाप्नुं शक्यं कथंचन।। (२) श्रीकृष्ण के कृपापात्र काशी के नरेश । ये श्रीकृष्ण की कृपा से राज्यलक्ष्मी को प्राप्त हुए थे ( उद्योग० २८ । १३)। (३) ये मत्स्यनरेश विराट के एक वीर पुत्र थे ( उद्योग ५७ । ३३ ) । (४) महर्षि विश्वामित्र के ब्रह्मवादी पुत्रों में से एक (अनु० ४ । ५०)। बभ्रुमाली-एक ऋषि, जो युधिष्ठिर की सभा में विराजमान होते हैं ( सभा० ४ । १६ )।
बभ्रवे – विश्वस्य भर्त्रे – ऋ.२.३३.८सायण भाष्य, अनवभ्रराधसः – अभ्रष्टहविरादिधनाः – ऋ. १.१६६.७सायणभाष्य
बभ्रुवाहन गरुड २.९.२(राजा बभ्रुवाहन द्वारा प्रेत के दर्शन, प्रेत का उद्धार, प्रेत द्वारा आत्मश्राद्ध का उपदेश), २.१७(राजा, मृगया काल में प्रेत दर्शन, प्रेत का उद्धार), ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८५(भण्डासुर के सेनापति पुत्रों में से एक), भागवत ९.२२.३२(अर्जुन व मणिपूर नरेश की कन्या का पुत्र, बभ्रुवाहन के मणिपूर - नरेश का पुत्र माने जाने का उल्लेख), विष्णु ४.२०.५०(वही) babhruvaahana/ babhruvahana बभ्रुवाहन - राजा चित्रवाहन की पुत्री चित्राङ्गदा के गर्भ से अर्जुन द्वारा उत्पन्न एक वीर राजा (आदि० २१६ । २४)। चित्रवाहन ने अर्जुन को अपनी कन्या देने से पहले ही यह शर्त रख दी थी कि इसके गर्भ से जो एक पुत्र हो, वह यहीं रहकर इस कुलपरम्परा का प्रवर्तक हो। इस कन्या के विवाह का यही शुल्क आपको देना होगा ।' 'तथास्तु' कहकर अर्जुन ने वैसा ही करने की प्रतिज्ञा की । पुत्र का जन्म हो जाने पर उसका नाम 'बभ्रुवाहन' रखा गया । उसे देखकर अर्जुन ने राजा चित्रवाहन से कहा-'महाराज ! इस बभ्रुवाहन को आप चित्राङ्गदा के शुल्करूप में ग्रहण कीजिये । इससे मैं आपके ऋण से मुक्त हो जाऊँगा ।' इसके अनुसार ये धर्मतः चित्रवाहन के पुत्र माने गये ( आदि० २१४ । २४-२६, आदि० २१६ । २४-२५) । अपने पिता अर्जुन को मणिपूर के समीप आया जान इनका बहुत-सा धन साथ में लेकर उनके दर्शन के लिये नगर के बाहर निकलना ( आश्व० ७९ । १)। क्षत्रियधर्म के अनुसार युद्ध न करने के कारण अर्जुन का इन्हें धिक्कारना (आश्व० ७९ । ३-७)। उलूपी के प्रोत्साहन देने पर इनका अर्जुन के साथ युद्ध करने के लिये उद्यत होना और अश्वमेधसम्बन्धी अश्व को पकड़वा लेना (आश्व० ७९ । ८-१७)। पिता और पुत्र में परस्पर अद्भुत युद्ध और बभ्रुवाहन का अर्जुन को मूर्छित करके स्वयं भी मूर्छित होना (आश्व० ७९ । १४-३७ ) । मूर्छा से जगने पर बभ्रुवाहन का विलाप और आमरण अनशन के लिये प्रतिज्ञा करके बैठना (आश्व० ८० । २१--४०) । उलूपी का बभ्रुवाहन को सान्त्वना देकर उनके हाथ में दिव्यमणि प्रदान करना और उसे पिता के वक्षःस्थल पर रखन के लिये आदेश देना ( आश्व० ८०। ४२-५०)। मणि के स्पर्श से जीवित हुए पिता को बभ्रुवाहन का प्रणाम करना और पिता का पुत्र को गले से लगाना (आश्व० ८० । ५१-५६ ) । अर्जुन का बभ्रुवाहन से युद्धस्थल में उलूपी और चित्राङ्गदा के उपस्थित होने का कारण पूछना और बभ्रुवाहन का उलूपी से ही पूछने की प्रार्थना करना (आश्व० ८० । ५७-६१)। उलूपी से सब समाचार सुनकर प्रसन्न हुए अर्जुन का बभ्रुवाहन को अपनी दोनों माताओं के साथ युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ में आनेके लिये निमन्त्रण देना (आश्व० ८१।१-२४)। पिता की आज्ञा शिरोधार्य करके बभ्रुवाहन का पिता से नगर में चलने के लिये अनुरोध करना और अर्जुन का कहीं भी ठहरने का नियम नहीं है। ऐसा कहकर पुत्र से सत्कारपूर्वक विदा ले वहाँ से प्रस्थान करना ( आश्व० ८१ । २६-३२) । अर्जुन का संदेश सुनाते हुए श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर से राजा बभ्रुवाहन के भावी आगमन की चर्चा करना (आश्व० ८६ । १८-२०)। माताओं सहित बभ्रुवाहन का कुरुदेश में आगमन और गुरुजनों को प्रणाम करके उनका कुन्ती के भवन में प्रवेश (आश्व० ८७ । २६-२८)। माताओं सहित बभ्रुवाहन का कुन्ती, द्रौपदी और सुभद्रा आदि के चरणों में प्रणाम करना और उन सबके द्वारा रत्न-आभूषण आदि से सम्मानित होना (आश्व० ८८ । १-५) । अन्तःपुर से आकर बभ्रुवाहन का राजा धृतराष्ट्र, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव और भगवान् श्रीकृष्ण को प्रणाम करना और उन सबके द्वारा धन आदि से सत्कृत होना । श्रीकृष्ण का बभ्रुवाहन को दिव्य अश्वों से जुता हुआ सुवर्णमय रथ प्रदान करना (आश्व० ८८ । ६-११)। राजा युधिष्ठिर का बभ्रुवाहन को बहुत धन देकर विदा करना (आश्व० ८९ । ३४) । महाभारतमें आये हुए बभ्रुवाहनके नाम-बभ्रुवाह, चित्राङ्गदासुत, चित्राङ्गदात्मज, धनंजयसुत, मणिपूरपति, मणिपूरेश्वर आदि । बर्करी स्कन्द १.२.३९.७०(महीसागर सङ्गम में पतित बर्करी का सङ्गम के पुण्य प्रभाव से शतशृङ्ग नृप की कुमारिका नामक कन्या के रूप रूप में जन्म, कुमारी द्वारा बर्करी मुख की प्राप्ति, सङ्गम स्नान से सुन्दर मुख प्राप्ति का वृत्तान्त), ४.१.४७(बर्करी कुण्ड : उत्तरार्क कुण्ड का उपनाम), ४.१.४७(सुलक्षणा के तप में सहायक, शिव वरदान से काशिराज - कन्या), लक्ष्मीनारायण १.४२३.२०(राधा की दासी चित्रलेखा का शापवश पृथिवी पर बर्करी रूप में जन्म लेना, तीर्थ में मरण के प्रभाव से राजा शतशतङ्ग की अजामुखी कन्या के रूप में जन्म लेना, अजामुखत्व से मुक्ति का वृत्तान्त, कालान्तर में उषा - सखी चित्रलेखा बनना ), द्र. अजामुखी barkaree/ barkari बर्बर गणेश २.६३.४०(कृत्या द्वारा बन्धित शुक्राचार्य का बर्बर देश में त्याग), पद्म ६.९९.३३(राहु का नाम), ब्रह्माण्ड १.२.१६.४९(उत्तर के जनपदों में से एक), १.२.१६.६५(विन्ध्य पृष्ठ के जनपदों में से एक), भागवत ९.८.५(सगर द्वारा बर्बर आदि जातियों को परास्त करने का उल्लेख), मत्स्य १६.१६(श्राद्ध काल में वर्जित जातियों में से एक), १२१.४५(चक्षु आदि नदियों द्वारा बर्बर आदि म्लेच्छ जनपदों को प्लावित करने का कथन), १४४.५७(कल्कि अवतार/प्रमति द्वारा बर्बर आदि जातियों के हनन का उल्लेख), वायु ४५.११८(उत्तर के देशों में से एक), ४७.४२(सीता नदी द्वारा प्लावित जनपदों में से एक), ५८.८३(कल्कि? अवतार द्वारा हनन किए गए जनपदों में से एक), ९८.१०८/२.३६.१०८(कल्कि अवतार द्वारा नष्ट किए गए जनपदों में से एक ) barbara This page was last updated on 08/20/22. |