पुराण विषय अनुक्रमणिका

PURAANIC SUBJECT INDEX

(From Phalabhooti  to Braahmi  )

Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar 

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Phalabhooti - Badari  (Phalgu, Phaalguna,  Phena, Baka, Bakula, Badavaa, Badavaanala, Badari etc.)

Badheera - Barbara( Bandi, Bandha / knot, Babhru, Barkari, Barbara etc.)

Barbara - Baladeva ( Barbari / Barbaree, Barhi, Barhishad, Barhishmati / Barhishmatee, Bala, Balakhaani, Baladeva etc.)

Baladevi - Balaahaka (Balabhadra, Balaraama, Balaa, Balaaka, Balaahaka etc.)

Bali - Bahu ( Bali, Bahu / multiple etc.)

Bahuputra - Baabhravya ( Bahuputra, Bahulaa, Baana, Baanaasura, Baadaraayana etc. )

Baala - Baashkali (Baala / child, Baalakhilya, Baali / Balee, Baashkala, Baashkali etc.)

Baaheeka - Bindurekhaa (Baahu / hand, Baahleeka, Bidaala, Bindu/point, Bindumati etc.)

Bindulaa - Budbuda (Bila / hole, Bilva, Bisa, Beeja / seed etc.)

Buddha - Brihat ( Buddha, Buddhi / intellect, Budha/mercury, Brihat / wide etc.)

Brihatee - Brihadraaja (  Brihati, Brihatsaama, Brihadashva, Brihadbala, Brihadratha etc.)

Brihadvana - Bradhna ( Brihaspati, Bodha etc.)

Brahma - Brahmadhaataa ( Brahma, Brahmcharya / celibacy, Brahmadatta etc. )

Brahmanaala - Brahmahatyaa (Brahmaraakshasa, Brahmarshi, Brahmaloka, Brahmashira , Brahmahatyaa etc. )

Brahmaa- Brahmaa  (  Brahmaa etc. )

Brahmaa - Braahmana  (Brahmaani, Brahmaanda / universe, Brahmaavarta, Braahmana etc. )

Braahmana - Braahmi ( Braahmana, Braahmi / Braahmee etc.)

 

 

Puraanic contexts of words like Bila / hole, Bilva, Bisa, Beeja/seed etc.are given here.

बिन्दुला स्कन्द ..२२.५५(बिन्दुला : विदुर - पत्नी, जार कर्मासक्त , पुराण श्रवण से मुक्ति, पिशाच योनि ग्रस्त पति की मुक्त हेतु उद्योग), लक्ष्मीनारायण .४५४.१७(सती पत्नी बिन्दुला द्वारा पति विदुर के दुष्कमोकी उपेक्षा, विदुर की मृत्यु पर सतीत्व प्रभाव से यमदूतों का वर्जन ) bindulaa 

बिन्दुसर ब्रह्माण्ड ..१८.२५(भगीरथ के तप का स्थान महिमा, गङ्गा का उद्भव स्थल), भविष्य ..२५.(बिन्दुसरोवर तीर पर बिन्दुग नामक ग्राम की स्थिति), भागवत .२१.३५(सरस्वती के जल से पूरित सरोवर, कर्दम ऋषि का स्थान), मत्स्य १२१.३१(गङ्गा के बिन्दुओं से बिन्दुसर की उत्पत्ति), वायु ४७.२४(आकाश गङ्गा के बिन्दुओं के पतन से बिन्दुसर की उत्पत्ति), स्कन्द ..७०.(बिन्दुसर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), वा.रामायण .४३.११(गङ्गा का शिव जटा से मुक्ति का स्थान ) bindusara 

बिभीतक पद्म .२८.२६(वृक्ष, प्रेतत्व दायक), भविष्य .५७.१९(भूतों हेतु बिभीतक बलि का उल्लेख), वामन ७५.(बिभीतक वन में कलि द्वारा प्रवेश), स्कन्द .२५२.२४(चातुर्मास में यम की बिभीतक में स्थिति का उल्लेख ) bibheetaka/ bibhitaka 

बिम्ब गर्ग .१५.१८(असम देश - अधिपति बिम्ब द्वारा प्रद्युम्न को भेंट), ब्रह्माण्ड ..७१.१७३(उपबिम्ब बिम्ब : वसुदेव भद्रा के पुत्रों में से ), वायु ९६.१७१/.३४.१७१(उपबिम्ब बिम्ब : वसुदेव भद्रा के पुत्रों में से ), कथासरित् ..१९५(बिम्बकि राजा द्वारा श्रीदत्त को स्वकन्या प्रदान ), द्र. श्रीबिम्ब bimba 

बिल भागवत .., १३(अदृष्ट निर्गम बिल के रूप में अन्त:ज्योति ? का कथन), स्कन्द ...३०(कलाप ग्राम में पहुंचने के लिए आकाशमार्ग तथा बिल मार्ग की शक्यता, बिल मार्ग से पहुंचने की विधि का कथन), ..४७.४०(रावण वध से उत्पन्न ब्रह्महत्या : राम द्वारा बिल में रख कर ऊपर से भैरव की स्थापना), ..२४(देवों द्वारा पाताल में हाटकेश्वर क्षेत्र को मिट्टी से भरना, कालान्तर में नागबिल का निर्माण, इन्द्र का नागबिल से हाटकेश्वर में आना देवों द्वारा नागबिल का गिरि से पूरण), महाभारत आदि .१२९(तक्षक नाग द्वारा पृथिवी में महाबिल में घुसने उत्तङ्क ऋषि द्वारा उसे खोदने का वृत्तान्त), वा.रामायण ..३०(राम लक्ष्मण द्वारा विराध राक्षस का वध, बिल में प्रक्षेपण), ..१२(वाली सुग्रीव से पीछा किए जाते हुए मायावी राक्षस का बिल में प्रवेश, राक्षस वध हेतु वाली का भी बिल में गमन), .५२.११(सीता अन्वेषण हेतु निकले हुए हनुमानादि वानरों का बिल में प्रवेश, तापसी स्वयंप्रभा के दर्शन, तापसी के प्रभाव से बिल से निर्गमन), लक्ष्मीनारायण .५३.४०+ (पृथिवी के पश्चिम् में भूविवर के पूरणार्थ राजा रैवत द्वारा श्रीहरि से सौराष्ट} देश की प्राप्ति तथा उस प्रदेश पर निवास का वृत्तान्त ) bila 

बिल्व अग्नि ८१.५०(राज्य लाभ हेतु होम द्रव्य - बिल्वं राज्याय लक्ष्मार्थं पाटलांश्चम्पकानपि ।), पद्म ४.२१.२५(कार्तिक व्रत में बिल्व सेवन से कलङ्की होने का उल्लेख - कलंकी जायते बिल्वे तिर्यग्योनिश्च निंबुके ।), ब्रह्माण्ड २.३.११.३९(बिल्व के बलि पात्र से लक्ष्मी, मेधा, आयु की प्राप्ति का उल्लेख - बैल्वे लक्ष्मीन्तथा मेधां नित्यमायुस्तथैव च ।), भविष्य १.५७.१७(कुबेर हेतु बिल्व बलि का उल्लेख - बिल्वं दद्यात्कुबेराय कपित्थं मरुतां तथा । ।), १.१८७.५२(बिल्व वृक्ष की गोमय से उत्पत्ति का उल्लेख - गोमयादुत्थितः श्रीमान्बिल्ववृक्षोऽर्कवल्लभः ।। तत्रास्ते पद्महस्ता श्रीर्वृक्षस्तेन च स स्मृतः ।।), २.३.१०(बिल्व प्रतिष्ठा विधि), ३.२.२२.१(बिल्वती ग्राम में राजा क्षत्रसिंह की कथा), मत्स्य १३.३१(बिल्व तीर्थ में सती देवी का बिल्वपत्रिका नाम से वास - स्थानेश्वरे भवानी तु बिल्वके बिल्वपत्रिका।), १७९.७१(बिल्वा : नृसिंह द्वारा सृष्ट मातृका भवमालिनी की ८ अनुचरी मातृकाओं में से एक), १९५.३३(बिल्वि : भार्गव वंश के पञ्चार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक),  महाभारत वन ३३.७(कुणीनामिव बिल्वानि पङ्गूनामिव धेनवः । हृतमैश्वर्यमस्माकं जीवतां भवतः कृते ।।), वराह ७९.९(बिल्व वन में बिल्व वृक्ष के फलों का कथन - शीर्यद्भिश्च पतद्भिश्च कीर्णभूमिवनान्तरम् । नाम्ना तच्छ्रीवनं नाम सर्वलोकेषु विश्रुतम् ।।), १४५.३८(बिल्वप्रभ : शालग्राम के अन्तर्गत बिल्वप्रभ तीर्थ का महत्त्व), १५३.४५(बिल्व वन : मथुरान्तर्वर्ती १२ तीर्थों में से एक), वामन १७.८(बिल्व की लक्ष्मी के हस्त से उत्पत्ति), वायु ३८.३४(सुमूल व वसुधार पर्वतों के बीच स्थित बिल्वस्थली की महिमा का कथन), विष्णुधर्मोत्तर .८२.(बिल्व के सकल लोक व आपः सारामृत का प्रतीक होने का उल्लेख - बिल्वं च सकलं लोकमपां सारामृतं तथा ।।), शिव १.२२.२१(बिल्वमूल व उसमें स्थित शिवलिङ्ग का महत्त्व - पुण्यतीर्थानि यावंति लोकेषु प्रथितान्यपि । तानि सर्वाणि तीर्थानिबिल्वमूलेव संति हि।..), ४.४०.१५(आखेट हेतु भिल्ल का बिल्व वृक्ष पर आरोहण, बिल्व पत्र का शिवलिङ्ग पर पतन, भिल्ल की मुक्ति की कथा - इत्येवं कुर्वतस्तस्य जलं बिल्वदलानि च ।। पतितानि ह्यधस्तत्र शिवलिंगमभूत्ततः ।।), स्कन्द १.१.३३(चण्ड किरात की बिल्व वृक्ष पर स्थिति, अनायास पत्र पतन से शिवलिङ्ग पूजन - एकदा निशि पापीयाच्छ्रीवृक्षोपरि संस्थितः॥ कोलं हंतुं धनुष्पाणिर्जाग्रच्चानिमिषेण हि॥ ), २.२.१३.२२(बैल्व फल द्वारा शिव की पूजा से श्रीकृष्ण द्वारा पाताल में प्रवेश हेतु विवर के दर्शन करना - बैल्वं फलं समादाय तत्रावाह्य त्रिलोचनम् ।। पूजयित्वा पुरारातिं तुष्टावासुरसूदनः ।।), २.२.१८.४(दक्षिण तट प्रदेश में बिल्वेश्वर के समीप अद्भुत वृक्ष का उद्भव, नारद द्वारा वृक्ष का माहात्म्य - दक्षिणे तटभूदेशे बिल्वेश्वरसमीपतः ।।...देव दृष्टो महान्वृक्षस्तटभूमौ महोदधेः ।।), २.४.३२.४४(भीष्मपञ्चक व्रत विधान के अन्तर्गत हरिपूजन में प्रथम दिन हरि चरणों को कमलों से, द्वितीय दिन जानुदेश को बिल्वपत्र से तथा तृतीय दिन शीर्ष को मालती से पूजने का निर्देश - प्रथमेऽह्नि हरेः पादौ पूजयेत्कमलैर्व्रती ।। द्वितीये बिल्वपत्रेण जानुदेशं समर्चयेत् ।।), ५.१.२६.७(बिल्वेश की महाकाल के पश्चिम् द्वार पर स्थिति का उल्लेख), ५.१.२६.२५(बिल्वेश्वर को अश्व दान का निर्देश - दत्त्वा बिल्वेश्वरे चाश्वं वृषं दत्त्वा तु चोत्तरे ।।), ५.२.८१.३३(बिल्वेश्वर : शिव के गण नायकों में से एक, क्षेत्र रक्षणार्थ प्रतीची दिशा में नियुक्ति - बिल्वेश्वरः प्रतीच्यां तु दुर्द्दर्शश्चोत्तरे तथा ।।), ५.२.८३(बिल्वेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, कपिल को पराजित करने के लिए बिल्व नृप द्वारा बिल्वेश्वर की पूजा की कथा), ५.३.१९८.६८(बिल्व तीर्थ में देवी की बिल्वपत्रिका नाम से स्थिति), ६.२४७.१(बिल्व में पार्वती के वास का कथन), ६.२५०(बिल्व की पार्वती के स्वेद से उत्पत्ति, अङ्गों में देवों की स्थिति), ७.१.१७.९(बिल्व की दन्तकाष्ठ का महत्त्व), ७.१.१७.११५(बिल्व पुष्प की महिमा का कथन - बिल्वस्य पत्रकुसुमैमहतीं श्रियमश्नुते ॥), हरिवंश २.७४.१९(बिल्वोदकेश्वर शिव , कृष्ण द्वारा पूजा - उदकं च गृहायाथ बिल्वं च हरिरव्ययः । देवमावाहयामास रुद्रं सर्वेश्वरेश्वरम् ।।), २.८०.३१(उन्नत स्तन प्राप्ति हेतु स्वर्ण - निर्मित बिल्व फल दान का निर्देश - संवत्सरे ततः पूर्णे द्वे बिल्वे काञ्चने शुभे । सदक्षिणे ब्राह्मणाय प्रयच्छति धृतात्मने ।।), २.८४.५३(बिल्वोदकेश्वर शिव की आज्ञा से कृष्ण द्वारा दुर्योधनादि राजाओं का गुफा में प्रक्षेपण - बिल्वोदकेश्वरेणाहमाज्ञप्तः शूलपाणिना । प्रक्षेप्तव्या नरेन्द्रास्ते गुहायामिति धीमता ।।), २.८५(बिल्वोदकेश्वर शिव की आज्ञा से कृष्ण द्वारा निकुम्भ का नाश - चक्रेण शमयस्यैनं देवब्राह्मणकण्टकम् ।। इति होवाच भगवान् देवो बिल्वोदकेश्वरः ।), योगवासिष्ठ ६.१.४५(बिल्वफल आख्यान द्वारा परब्रह्म का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.४४१.९६(प्लक्षावतार श्रीहरि के दर्शन हेतु शम्भु द्वारा बिल्व वृक्ष का रूप धारण करने का उल्लेख - धवलद्रुस्तदा नन्दी शंभुर्बिल्वस्वरूपधृक् ।), १.५५९.३२(राजा रन्तिदेव द्वारा अग्नि में बिल्व आम्रवेतस की आहुति से बिल्वाम्रक लिङ्ग के समुत्थान का कथन - अथाऽग्नौ च जुहावाऽयं राजा बिल्वाऽऽम्रवेतसम् । तस्मात् समुत्थितं लिंगं ज्वलत्कालानलप्रभम् ॥), १.५५९.८१(बिल्वाम्रक तीर्थ में स्नान आदि से काम की दासियों को कुब्जत्व से मुक्ति का वृत्तान्त - यज्ञपाकाश्रमं गत्वा बिल्वाम्रकं सुतीर्थकम् ॥ कृत्वा शापात्ततो मुक्ता भविष्यन्ति द्रुतं तु ताः ।), ४.४८(बिल्व नगर के मदिरा व्यवसायियों द्वारा कथा श्रवण हेतु प्रयाण व मार्ग में लुण्ठकों से कष्ट प्राप्ति का वृत्तान्त), कथासरित् ७.१.५६(ब्राह्मण द्वारा बिल्वफल से होम, राजा द्वारा कारण की पृच्छा, अग्निदेव द्वारा वर प्रदान की कथा - अनेन बिल्वहोमेन प्रसीदति यदानलः । हिरण्मयानि बिल्वानि तदा निर्यान्ति कुण्डतः ।। ),सुश्रुत सूत्रस्थान ४६.२०९(फलेषु परिपक्वं यद्गुणवत्तदुदाहृतम्। बिल्वादन्यत्र विज्ञेयमामं तद्धि गुणोत्तरम्॥),  अथर्वपरिशिष्ट ३१.६.४(कांचन प्राप्ति के लिए बिल्व से होम का निर्देश - समिद्भिः सर्वकामस्तु बिल्वैः प्राप्नोति काञ्चनम् ॥), bilva

 

बिल्वप्रभ वराह १४५.३८(शालग्राम के अन्तर्गत बिल्वप्रभ तीर्थ का महत्त्व - तत्र बिल्वप्रभं नाम गुह्यं क्षेत्रं मम प्रियम् ।। कुञ्जानि तत्र चत्वारि क्रोशमात्रे यशस्विनि ।। )

 

बिल्वमङ्गल भविष्य ३.४.२२.२५(अकबर - मित्र, पूर्व जन्म में शूर - बिल्वमङ्गल एवापि नाम्ना तन्नृपतेः सखा । नायिकाभेदनिपुणो वेश्यानां स च पारगः ।  )

 

बिस पद्म .३६.५६(बिस तन्तु आदि पांच राक्षसों के राम -सेना द्वारा संहार का उल्लेख), स्कन्द ..२५५(ऋषियों द्वारा सरोवर से प्राप्त बिसों का शुनोमुख रूप धारी इन्द्र द्वारा हरण, पश्चात् इन्द्र द्वारा वर प्रदान, ऋषि तीर्थ की स्थापना), योगवासिष्ठ .८१.१०५(बिसतन्तु की महामेरु से उपमा), लक्ष्मीनारायण .३७४.१४(बृहस्पति की अवमानना से इन्द्र को ब्रह्महत्या की प्राप्ति तथा इन्द्र के पुष्कर सरोवर में कमल सूत्र में छिपने का उल्लेख ) bisa 

बीज अग्नि २५(चतुर्व्यूह के देवताओं आदि के लिए बीज मन्त्र), २६(बीज मन्त्रों हेतु मुद्राएं), ३३.३८(यं, रं, लं आदि बीजों के विशिष्ट कार्य), ५९.१३(बीज मन्त्रों के प्रतीक न्यास), ८४+ (दीक्षा में कलाओं के लिए विशिष्ट बीज), ८८.४७(हां हीं हूं आदि बीज मन्त्रों का अर्थ), ९१(देवता अनुसार मन्त्र में बीजाक्षर को सम्बद्ध करना), १२१.४०(बीज वपन हेतु नक्षत्र विचार), २०१(नवव्यूहार्चन विधि में वासुदेवादि की पृथक् - पृथक् बीज से युक्त करके पूजा का विधान, गदा, गरुड, श्रीवत्स आदि के बीजमन्त्रों का कथन), ३०१.(गणपति हेतु बीज मन्त्र), ३१७(शिव मूर्तियों प्रासाद मन्त्र के बीज मन्त्र), ३२३.१५(बीज मन्त्र हंस माया मन्त्र का कथन), कूर्म .४६.४१(सबीज निर्बीज योगों का कथन), गरुड .(बीज मन्त्रों सहित सूर्य आदि ग्रहों, शिव, विष्णु आयुधों की पूजा), .११(बीज मन्त्र न्यास), .२०(आयुधों हेतु बीज मन्त्र), गर्ग .(कृष्ण द्वारा कृषि हेतु मुक्ताकणों का बीज रूप में उपयोग), पद्म ..२४(इन्द्र द्वारा हत बल दैत्य के शरीर के अवयवों की रत्नबीजत्व रूप में परिणति), .१०४.२९(गौरी, लक्ष्मी स्वरा द्वारा देवों को स्व - स्व बीज का दान, देवों द्वारा बीजारोपण, बीजों से धात्री, मालती तुलसी नामक वनस्पतियों की उत्पत्ति), ब्रह्माण्ड ..१९.२०(बीजाकर्षणिका : चन्द्रमा की कला रूपा गुप्ता संज्ञक १६ शक्तियों में से एक), ..३६.७१(वही), मत्स्य (बीज की अण्ड रूप में परिणति, ब्रह्माण्ड का प्राकट्य), १७९.६९(बीजभावा : नृसिंह द्वारा सृष्ट माया मातृका की अनुचरी देवियों में से एक), १९७.(बीजवापी : अत्रि वंश के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), लिङ्ग .१७.६३(मकार के विभु बीजी, अकार के बीज और उकार के हरि योनि के संयोग से सौवर्ण अण्ड की उत्पत्ति का कथन), .२०.७०(विष्णु योनि, ब्रह्मा बीज, शिव बीजी), .४९.६३(बीजपूर वन में बृहस्पति का वास), वायु .२३(प्रलय काल में तपोलोक से नीचे की प्रजा के अग्नि से दग्ध होने और नये सर्ग के लिए बीज बनने का कथन), १०१.२२८/.३९.२२८(ईश्वर से बीज की उत्पत्ति, क्षेत्रज्ञ बीज तथा नारायणात्मिका प्रकृति के योनि होने का कथन), विष्णुधर्मोत्तर .३०१.३२(बीज प्रतिग्रह की संक्षिप्त विधि), शिव ..११(ओङ्कार की मात्रा बीज, योनि बीजी का रूप), ..२७.२३(शिवाग्नि की स्थापना अग्नि संस्कार के अन्तर्गत भ्रुं स्तुं ्रुं श्रुं पुं ्रुं द्रु नामक सात अग्नि बीजों का कथन), स्कन्द ..२२.२८(देवियों द्वारा कार्यसिद्धि हेतु देवों को बीज प्रदान, देवों का बीज ग्रहण कर विष्णु द्वारा अधिष्ठित भूमि पर बीजों का प्रक्षेपण), ..२३(देवियों द्वारा प्रदत्त बीजों से धात्री, मालती , तुलसी की उत्पत्ति), ..२०.(शिव - पार्वती संवाद में बीज मन्त्रों के भेद), ..२०.१९, ..५२.४३(हिरण्याक्ष वध हेतु विष्णु द्वारा धारित वराह स्वरूप में बीज ओषधि की तनूरुह/रोंगटों से उपमा ?), ..१०३.६१(ब्रह्मा द्वारा मेघरूप होकर बीजवपन करने, विष्णु के हेमन्त रूप होकर पालन करने तथा शिव द्वारा ग्रीष्म रूप होकर कर्षण करने रूप व्यापार का कथन), ..१११.१३ (अग्नि द्वारा शिव पार्वती की रति में व्यवधान, शिवाज्ञा से अग्नि द्वारा अमोघ बीज का धारण, असह्य होने पर गङ्गा में प्रक्षेपण, स्कन्द के जन्म का वृत्तान्त), योगवासिष्ठ .१+ (बीजाङ्कुर), .९१(संसृति बीज), ..८०.७९(सूक्ष्म तन्मात्र की बीज से तुलना, पांच तन्मात्र बीजों से पांच भूत - पादपों की उत्पत्ति), ..(कर्म बीज), ..(जगत वृक्ष के बीज), ..२८(दैव द्वारा वासना बीज के अङ्कुरण को रोकने का उपाय), ..३६(संसार बीज), ..४४.(चित्त भूमि में समाधि बीज द्वारा कृषि का वर्णन), ..९४.६८(अन्तरिक्ष रूपी अक्षय क्षेत्र में गगन रूपी बीज से उत्पन्न प्रजाओं का वर्णन), महाभारत वन ३१३.५६(निवपन करने वालों के लिए बीज के श्रेष्ठ होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद), अनुशासन .(दैव बीज और पुरुषार्थ क्षेत्र होने का कथन), आश्वमेधिक ९२.२०(अगस्त्य के बीज यज्ञ का उल्लेख), ९२दाक्षिणात्य पृ.६३१९(बीज का ब्रह्मचर्य से सम्बन्ध), लक्ष्मीनारायण .५८.१३(रक्त बिन्दुओं से सिक्त बीजों के वपन से आरबीज नामक प्रजा की उत्पत्ति का वृत्तान्त), .११०.६६(बीजजङ्गी द्वारा फिलीप द्वीप का राज्य प्राप्त करने का उल्लेख), .११.(कोशस्तेन राक्षस द्वारा ब्रह्मचारियों देवों के बीजों का भक्षण, कोशस्तेन के निग्रह के लिए बीज नारायण का प्राकट्य), कथासरित् ..८४(देवी - प्रदत्त दिव्य बीज द्वारा उद्यान का निर्माण ), द्र. उशीरबीज, रक्तबीज beeja/ bija

बीरबल भविष्य ..२२.२२(अकबर - सभासद, पूर्व जन्म में मुकुन्द - शिष्य देवापि ) 

बुदबुद ब्रह्माण्ड ..१६.२६(बुदबुदा : हिमालय से नि:सृत नदियों में से एक), वायु .६७(महत् से लेकर विशेष तक के तत्त्वों द्वारा जल बुद्बुदवत् अण्ड उत्पन्न करने का उल्लेख ), द्र. बुद्बुद budbuda

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