पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Phalabhooti to Braahmi ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Brihaspati, Bodha etc. are given here. बृहद्वन भागवत १०.५.२६(गोपों के निवास बृहद्वन का उल्लेख), १०.७.३३(बृहद्वन में अद्भुत घटनाओं के घटने का उल्लेख), १०.११.२१(बृहद्वन में उत्पातों के कारण गोपों द्वारा बृहद्वन को त्यागने का उल्लेख ) brihadvana बृहद्वर्चा लक्ष्मीनारायण २.७७.२(अनङ्गपुर के राजा बृहद्वर्चा द्वारा तपती नदी के तट पर प्रदत्त दक्षिणा से ब्राह्मणों का कृष्ण वर्ण होना, सुरतायन ऋषि द्वारा प्रदत्त ज्ञान से ब्राह्मणों का उद्धार ) brihadvarchaa बृहद्वसु ब्रह्माण्ड १.२.३६.२९(वंशवर्ती संज्ञक गण के देवों में से एक), वायु ६२.२६/२.१.२६(वही), ९९.१७०/२.३७.१६६(अजमीढ व धूमिनी - पुत्र, बृहद्विष्णु - पिता ) brihadvasu बृहन्त मत्स्य ४९.४८(बृहदनु - पुत्र, बृहन्मना - पिता), १७१.५४(मरुत्वती के मरुद्गण संज्ञक पुत्रों में से एक ) बृहन्मना भागवत ९.२३.११(बृहद्रथ? - पुत्र, जयद्रथ - पिता, अङ्ग वंश), मत्स्य ४८.१०५(बृहद्भानु - पुत्र बृहन्मना की २ पत्नियों से उत्पन्न सन्तानों का कथन), ४९.४८(बृहन्त - पुत्र, बृहद्धनु - पिता), वायु ९९.११०/२.३७.११०(बृहद्भानु - पुत्र, बृहन्मना की २ पत्नियों से उत्पन्न सन्तानों का कथन), विष्णु ४.१८.२२(बृहद्भानु - पुत्र, जयद्रथ - पिता ) brihanmanaa
बृहस्पति गणेश
२.१०.२४(बृहस्पति द्वारा महोत्कट गणेश
का भारभूति नामकरण),
गरुड
३.७.१७(बृहस्पति द्वारा हरि स्तुति),
३.२८.४५(बृहस्पति के
भरत, नल, द्रोण व उद्धव रूप में
अवतारों का कथन),
देवीभागवत
३.१०.२१(देवदत्त के पुत्रेष्टि यज्ञ में
बृहस्पति के होता बनने का उल्लेख),
४.१२.५१(देवगुरु बृहस्पति का काव्य रूप
धारण कर दैत्यों के समीप गमन,
अध्यापनादि का वृत्तान्त),
४.१३(बृहस्पति द्वारा शुक्र वेश में
दैत्यों की वंचना),
पद्म
१.३४.१७(ब्रह्मा के यज्ञ में नेष्टा),
ब्रह्म
२.१०४.२४(बार्हस्पत्य तीर्थ का
संक्षिप्त माहात्म्य : बृहस्पति द्वारा यज्ञ संपादन से बार्हस्पत्य नाम धारण),
ब्रह्मवैवर्त्त
२.५१.३१(बृहस्पति द्वारा सुयज्ञ नृप से
ब्रह्महत्या पाप के प्रायश्चित्त का कथन),
४.६०(बृहस्पति द्वारा शची को प्रबोध),
४.६२.४४(मिश्रकेशी के शाप से बृहस्पति
के हृतभार्य होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड
२.३.१५.३२(बार्हस्पत्य शास्त्र में
पारंगत द्विज के पंक्तिपावन होने का उल्लेख),
३.४.९.९(संसार की अपेक्षा तीर्थ यात्रा
की श्रेष्ठता कथन पर बृहस्पति का पृथ्वी पर पतन),
भविष्य
१.३४.२३(बृहस्पति ग्रह का पद्म नाग से
तादात्म्य
-
पद्मं बृहस्पतिं विद्यान्महापद्मं च भार्गवम् ।),
३.४.१७.४९(बृहस्पति
ग्रह : ध्रुव व वह्निदेवा - पुत्र),
३.४.२५.३८(ब्रह्माण्ड वक्त्र से जीव तथा
जीव से दक्षसावर्णि मन्वन्तर की उत्पत्ति का उल्लेख),
४.९९(सोम द्वारा देवाचार्य बृहस्पति की
पत्नी तारा के हरण का वृत्तान्त),
४.१२०.८(बृहस्पति पूजा विधान),
भागवत
३.८.८(सांख्यायन द्वारा बृहस्पति को
भागवत पुराण सुनाने का उल्लेख),
४.१.३५(श्रद्धा
व अङ्गिरा की सन्तानों में से एक),
४.३.३(वाजपेय के पश्चात् बृहस्पतिसव का
अनुष्ठान कर रहे दक्ष के यज्ञ में विघ्न),
६.७(इन्द्र
द्वारा बृहस्पति का अपमान
,
बृहस्पति द्वारा देवों का त्याग),
९.१४.४(चन्द्रमा द्वारा बृहस्पति -
भार्या तारा के अपहरण,
बृहस्पति द्वारा तारा की पुन: प्राप्ति और बुध के जन्म का वृत्तान्त),
९.२०.३६(बृहस्पति व ममता से भरद्वाज के
जन्म का कथन),
१२.६.२३(बृहस्पति द्वारा सर्पसत्र में
तक्षक के नाश के विरुद्ध जनमेजय को सम्मति,
जनमेजय की स्वीकृति),
मत्स्य
२३.३०+ (चन्द्रमा द्वारा बृहस्पति -
भार्या तारा के अपहरण व बुध के जन्म का वृत्तान्त),
२६(बृहस्पति - पुत्र कच द्वारा
शुक्राचार्य - पुत्री देवयानी से विवाह की अस्वीकृति का वृत्तान्त),
४७.१८२(बृहस्पति द्वारा शुक्राचार्य का
वेश धारण कर दैत्यों की वंचना),
४८.३३(बृहस्पति द्वारा ममता के गर्भ को
दीर्घ तम में प्रवेश का शाप),
७३.७(बृहस्पति
ग्रह
पूजा
विधि),
९४.५(बृहस्पति का स्वरूप
-
देवदैत्यगुरू तद्वत्पीतश्वेतो चतुर्भुजौ। दण्डिनौ वरदौ कार्यौ साक्षसूत्रकमण्डलू।।),
१२७.५(बृहस्पति ग्रह के रथ का स्वरूप
-
सर्पतेऽसौ कुमारो वै ऋजुवक्रानुवक्रगः। अतश्चाङ्गिरसौ विद्वान् देवाचार्यो
बृहस्पतिः।। .....),
१२८.६४(ग्रहों में बृहस्पति गृह की
आपेक्षिक स्थिति
-
भार्गवात्पादहीनश्च विज्ञेयो वै बृहस्पतिः। बृहस्पतेः पादहीनौ केतुवक्रावुभौ
स्मृतौ।।),
१४८.६४(दैत्यों को नियन्त्रित करने के
लिए बृहस्पति की इन्द्र को सम्मति),
१९६.४(सुरूपा व अङ्गिरा के गोत्रकार ऋषि
पुत्रों में से एक),
१९६.१९(परस्पर अवैवाह्य ३ प्रवरों में
से एक),
२४५.८५(बृहस्पति द्वारा वामन को
यज्ञोपवीत देने का उल्लेख),
२५२.३(वास्तुशास्त्र के १८ उपदेशकों में
से एक),
वराह
५(बृहस्पति द्वारा रैभ्य को कर्म या
ज्ञान में श्रेष्ठता का वर्णन),
वामन
५०(बृहस्पति का मृगशिरा में प्रवेश
-
यदा मृगशिरो ऋक्षे शशिसूर्यौ बृहस्पतिः। तिष्ठन्ति सा तिथिः पुण्या त्वक्षया
परिगीयते।।),
वायु
२३.१६२(१६वें परिवर्त/द्वापर में गोकर्ण
नामक अवतार के पुत्रों में से एक,
कश्यप, उशना व च्यवन-भ्राता),
५२.७७(बृहस्पति ग्रह के रथ का स्वरूप
-
शोणैरश्वैः काञ्चनेन स्यन्दनेन प्रसर्पति ।। युक्तस्तु
वाजिभिर्दिव्यैरष्टाभिर्वातसम्मितैः।),
५३.३३(शुक्र व बृहस्पति के प्रजापति -
पुत्र होने का उल्लेख),
५३.८७(बृहस्पति ग्रह द्वारा सूर्य की १२
रश्मियां/अंश प्राप्त करने का उल्लेख
-
हरिश्चाप्यं बृहच्चापि द्वादशांशोर्बृहस्पतेः।),
५९.९०(ज्ञान से ऋषिता प्राप्त करने वाले
ऋषियों में से एक),
६५.१०४/२.४.१०४(सुरूपा
- पुत्र बृहस्पति के
१०
अनुजों की अङ्गिरस संज्ञा व नाम),
६६.४४/२.५.४४(बार्हस्पत्य : रात्रि के १५ मुहूर्तों में से एक),
७०.४/२.९.४(बृहस्पति
द्वारा सब/विश्वेषां
अङ्गिरसों का आधिपत्य प्राप्त करने का उल्लेख),
७९.५८/
२.१७.५८ (बार्हस्पत्य शास्त्र में
पारंगत द्विज के पंक्तिपावन होने का उल्लेख),
९८.१६/२.३६.१६(बृहस्पति
द्वारा दैत्यों की वञ्चना के लिए काव्य रूप धारण),
९९.३७/२.३७.३७(बृहस्पति
द्वारा ममता के गर्भ को दीर्घ तम में प्रवेश करने का शाप),
१०१.१३३/२.३९.१३३(बृहस्पति
ग्रह की ग्रहों के मध्य आपेक्षिक स्थिति
-
ततो बृहस्पतिश्चोर्द्ध्वं तस्मादूर्द्ध्वं शनैश्चरः।),
१०३.५९/२.४१.५९(बृहस्पति
द्वारा उशना से ब्रह्माण्ड?
पुराण का श्रवण कर सविता को सुनाने का उल्लेख),
विष्णु
२.७.९(बृहस्पति ग्रह की ग्रहों के मध्य
आपेक्षिक स्थिति
-
लक्षद्वये तु भौमस्य स्थितो देवपुरोहितः
॥ बृहस्पति- महर्षि अङ्गिराके पुत्र । उतथ्य और संवर्त के भाई ( आदि० ६६ । ५)। बृहस्पतिजी की ब्रह्मवादिनी बहिन योगपरायण हो अनासक्त भाव से सम्पूर्ण जगत में विचरती है । वह प्रभास नामक वसु की पत्नी हुई (आदि. ६६ । २६-२७)। इनके अंश से द्रोणाचार्य की उत्पत्ति हुई थी ( आदि. ६७ । ६९) । देवताओं द्वारा इनका पुरोहित के पद पर वरण (आदि० ७६ । ६)। शुक्राचार्यके साथ इनकी स्पर्धा (आदि० ७६ । ७)। इनके पुत्र का नाम 'कच' था ( आदि० ७६ । ११) । इन्होंने भरद्वाज मुनि को आग्नेयास्त्र प्रदान किया था (आदि० १६९ । २९)। ये इन्द्र की सभा में विराजमान होते हैं (सभा० ७ । २८) । ब्रह्माजी की सभा में भी उपस्थित होते हैं (सभा० ११ । २९) । इनके द्वारा चान्द्रमसी (तारा) नामक पत्नी से छः अग्निस्वरूप पुत्र उत्पन्न हुए, जिनमें शंयु सबसे बड़ा था । इनके सिवा, एक कन्या भी हुई थी (वन० २१९ अध्याय)। नहुष के भय से भीत शची को इनका आश्वासन देना (उद्योग० ११ । २३-२५)। नहुष से अवधि माँगने के लिये शची को सलाह देना (उद्योग० १२ । २५)। अग्नि के साथ संवाद (उद्योग० १५। २८-३४ ) । इनके द्वारा आपः में प्रवेश करने और इन्द्र का अन्वेषण करने के लिए अग्नि का स्तवन, ( उद्योग० १६ । १-८)। इनका इन्द्र की स्तुति करना (उद्योग० १६ । १४-१८)। इन्द्र के प्रति नहुष के बल का वर्णन ( उद्योग० १६ । २३-२४ ) । पृथ्वीदोहन के समय ये दोग्धा बने थे (द्रोण० ६९ । २३)। इनके द्वारा स्कन्द को दण्ड का दान (शल्य०४६ । ५०)। कोसलनरेश वसुमना से राजा की आवश्यकता का प्रतिपादन (शान्ति० ६८ । ८-६०)। इन्द्र को सान्त्वनापूर्ण मधुर वचन बोलने का उपदेश (शान्ति० ८४ अध्याय)। इनका इन्द्र को विजय-प्राप्ति के उपाय और दुष्टों का लक्षण बताना (शान्ति० १०३ । ७--५२) । इन्द्र को शुक्राचार्य के पास श्रेयःप्राप्ति के लिये भेजना (शान्ति० १२४ । २४ )। मनु से ज्ञानविषयक विविध प्रश्न करना (शान्ति. २०१ अध्याय से २०६ अध्याय तक)। उपरिचर के यज्ञ में भगवान पर कुपित होना (शान्ति० ३३६ । १४)। मुनियों के समझाने से क्रोध शान्त करके यज्ञ को पूर्ण करना (शान्ति. ३३६ । ६०-६१)। इनके द्वारा जलाभिमानी देवता को शाप (शान्ति० ३४२ । २७) । इनके द्वारा इन्द्र से भूमिदान के महत्त्व का वर्णन ( अनु० ६२ । ५५--९२)। राजा मान्धाता के पूछने पर उनको गोदान के विषय में उपदेश (अनु० ७६ । ५--२३)। युधिष्ठिर के प्रति इनका प्राणियों के जन्म-मृत्यु का और नानाविध पापों के फलस्वरूप नाना योनियों में जन्म लेने का वर्णन ( अनु० १११ अध्याय)। युधिष्ठिर को अन्नदान की महिमा बताना (अनु० ११२ अध्याय)। युधिष्ठिर को अहिंसा एवं धर्म की महिमा का उपदेश देकर इनका स्वर्गगमन ( अनु० ११३ अध्याय)। इनके द्वारा इन्द्र को धर्मोपदेश (अनु० १२५ । ६०-६८) । इन्द्र के कहने से मनुष्य का यज्ञ न कराने की प्रतिज्ञा करना ( आश्व० ५ । २५-२७) । मरुत्त से उनका यज्ञ कराने से इनकार करना (आश्व० ६। ८-९)। मरुत्त को धन प्राप्त होने से इनका चिन्तित होना ( आश्व० ८ । ३६-३७) । इन्द्र के पूछने पर उनसे अपनी चिन्ता का कारण बताते हुए मरुत्त और संवर्त को कैद करनेके लिये कहना (आश्व० ९ । ७)। ये और सोम ब्राह्मणों के राजा बताये गये हैं ( आश्व० ९ । ८-१०)।
बेर शिव १.१०.३७, १.११.१९(शिव के लिङ्ग व बेर/मूर्ति में अपेक्षाकृत लिङ्ग पूजन की श्रेष्ठता, पञ्चाक्षर मन्त्र से बेर पूजन, लिङ्ग व बेर पूजन के शिवपद प्रदाता होने का कथन), ७.२.३४.५(शिव के बेर लिङ्ग की स्थापना का निर्देश ) bera बोध ब्रह्माण्ड १.२.९.६०(धर्म व बुद्धि के २ पुत्रों में से एक), १.२.१६.४१(मध्य देश के जनपदों में से एक), १.२.३५.२८(बौधेय : याज्ञवल्क्य के वाजी संज्ञक शिष्यों में से एक), मत्स्य २००.३( बोधप : वसिष्ठ कुल के एकार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), मार्कण्डेय ५०.२७(बुद्धि - पुत्र), वायु १०.३५(धर्म व बुद्धि के २ पुत्रों में से एक), ५९.७७(पुरुष के बोधात्मक होने के कारण का कथन), स्कन्द ५.२.३३.२०(बोध ब्राह्मण - पुत्र का निशाचरी द्वारा भक्षण, बोध द्वारा विक्रान्त - पुत्र का चैत्र नाम से पालन व शिक्षण), लक्ष्मीनारायण २.१०९.६६(प्राचीनों के राजा बोधविहङ्गम आदि का यज्ञान्त में देवादि के साथ युद्ध व मृत्यु का वृत्तान्त), २.२४५.८१(भक्ति के स्नेह से, स्नेह के माहात्म्य बोध से तथा बोध के सन्त समागम से वर्धित होने आदि का कथन), ३.२०१.१२(बोधायन महर्षि द्वारा हारीतक शूद्र व उसकी पत्नी कस्तूरिका को गर्भस्थ बालक के पूर्व जन्म के वृत्तान्त का वर्णन तथा गर्भस्थ बालक द्वारा महर्षि की शिक्षाओं का अङ्गीकरण आदि ) bodha बोधि वायु १११.२६/२.४९.३३(गया में महाबोधि तरु के महत्त्व का कथन), कथासरित् १०.९.२(बोधिसत्त्व के अंश से उत्पन्न वणिक् की कथा ) bodhi बोध्य भागवत ६.१५.१४(पृथिवी पर विचरने वाले सिद्ध ऋषियों में से एक), १२.६.५५(संहिता प्राप्त करने वाले बाष्कल के ४ शिष्यों में से एक), विष्णु ३.४.१७(ऋग्वेद संहिता प्राप्त करने वाले बाष्कल के ४ शिष्यों में से एक ) bodhya बोपदेव भविष्य ३.२.३२(बोपदेव द्विज द्वारा हरि कृपा से वर रूप में भागवत ज्ञान की प्राप्ति )
बौद्ध
गणेश
२.४७.३(विष्णु
द्वारा
बौद्ध
रूप
धारण
कर
दिवोदास
- पालित
काशी
की
प्रजा
को
मोह
में
डालना),
भविष्य
३.१.६(शाक्यमुनि
प्रभृति
बौद्ध
राजाओं
का
कथन),
३.३.२९.१६(बौद्धों
के
आर्यों
के
साथ
युद्ध
का
वर्णन),
स्कन्द
४.२.५८.७२(काशी
से
दिवोदास
के
उच्चाटन
हेतु
विष्णु
व
गरुड
द्वारा
बौद्ध
आचार्य
व
शिष्य
रूप
धारण),
लक्ष्मीनारायण
१.४९८.४१,
३.१७०.१९( बौद्धसिंह भविष्य ३.३.२९.४३(बौद्धसिंह द्वारा योगसिंह व भोगसिंह का वध, इन्दुल से पराजय), ब्रध्न ब्रह्मवैवर्त्त ३.१९.२८(ब्रध्न सूर्य से करों की रक्षा की प्रार्थना ) bradhna This page was last updated on 07/23/21. |