पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Phalabhooti to Braahmi ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Brahma, Brahmcharya / celibacy, Brahmadatta etc. are given here. Comments on Brahmcharya/celibacy ब्रह्म अग्नि ८४.३२(८ देवयोनियों में अष्टम), देवीभागवत ७.३६(देवी द्वारा हिमालय को ब्रह्म के स्वरूप का कथन), ११.२०(ब्रह्म यज्ञ की विधि), पद्म १.२०.९८(ब्रह्म व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य), ४.१+ (पद्म पुराण का ब्रह्म खण्ड), ब्रह्माण्ड १.१.५.१००(ब्रह्म के वृक्ष रूप का वर्णन), २.३.७.३६(ब्रह्मण : कद्रू व कश्यप के प्रधान नाग पुत्रों में से एक), भागवत ३.१२.३४(ब्राह्म कल्प में शब्द ब्रह्म रूपी ब्रह्मा का निरूपण), ५.२०.३२(पुष्कर द्वीप के निवासियों द्वारा ब्रह्म की सकर्मक कर्म द्वारा आराधना का कथन), ११.३(पिप्पलायन का निमि को ब्रह्म सम्बन्धी उपदेश), मत्स्य १३.५३(चित्त तीर्थ में सती की ब्रह्मकला नाम से स्थिति का उल्लेख), १४५.१००(ब्रह्मवान् : १९ मन्त्रकृत् ऋषियों में से एक), १९६.१५(ब्रह्मतन्वि : आङ्गिरस कुल के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वामन ९०.४०(ब्रह्मलोक में विष्णु की ब्रह्मा नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), वायु ९.११३/१.९.१०५(ब्रह्मवन में ब्रह्मवृक्ष के रूप में पुरुष के रूपक का कथन), ५१.३४(ब्रह्म के नि:श्वास से निर्मित ब्रह्मज मेघों की प्रकृति का कथन), ६१.८१(ब्रह्मवादियों को उत्पन्न करने वाले वसिष्ठ आदि गोत्रों के नाम), ६१.१०७(ब्रह्म की निरुक्ति : बृहत्वात्, बृंहणत्वात्), ६१.१०९(सुब्रह्म के लक्षण), ६६.४४/२.५.४४(रात्रि के १५ मुहूर्त्तों में से एक), ६७.८०/२.६.८०(ब्रह्मजित् : कालनेमि के ४ पुत्रों में से एक), ८६.४३/२.२४.४३(ब्रह्मदान : गान्धार ग्रामिकों में से एक), विष्णु १.२२.४३(परब्रह्म के पद का वर्णन), २.८.१९(ब्रह्म सभा से सूर्य की मरीचियों के प्रतीप गमन का उल्लेख), ३.३.२२(ओम रूप एकाक्षर ब्रह्म की निरुक्ति व विवेचना, बृहत्व व बृंहण से ब्रह्म नाम धारण), ६.५.६४(ब्रह्म के २ प्रकार, शब्द ब्रह्म में निष्णात होने पर परब्रह्म की प्राप्ति), शिव २.१.८(शब्द ब्रह्म के स्वरूप वर्णन में देह के विभिन्न अङ्गों में वर्ण मातृकाओं का न्यास, ज्ञान से ब्रह्मा व विष्णु के गर्व का परिहार), ५.१९.१५(सात महालोकों में से एक सत्यलोक की ब्रह्मलोक नाम से प्रसिद्धि, पवित्रात्माओं का स्थान), ७.२.५.३(परमतत्त्व के ब्रह्म, परब्रह्म, अपरब्रह्म आदि नामों का हेतु), स्कन्द १.१.७.३२( ब्रह्म गिरि पर त्र्यम्बक लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख), १.२.५६ (ब्रह्मसर के तट पर ब्रह्मा द्वारा ब्रह्मेश लिङ्ग की स्थापना, लिङ्ग का माहात्म्य), ३.१.१४(, ३.१.२४(, ३.१.४०(, ४.२.८३.९७(ब्रह्म तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.२.२३(ब्रह्मा के नाम धारण के हेतु का कथन), ५.२.६५.३४(ब्रह्मेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ५.२.८३.१५(बिल्व व कपिल के परस्पर वाद में बिल्व द्वारा दान तथा तीर्थ के प्राधान्य और कपिल द्वारा ब्रह्म व तप के प्राधान्य के प्रतिपादन का वृत्तान्त), ५.३.१३.४२(२१ कल्पों में तीसरे कल्प का नाम), ५.३.५५.२२(शूलभेद तीर्थ में विष्णु की पिता रूप से, ब्रह्मा की पितामह रूप से तथा रुद्र की प्रपितामह रूप से स्थिति), ५.३.५६.१२१(दानों में ब्रह्मदान की श्रेष्ठता का कथन), ५.३.१२९(ब्रह्म तीर्थ का माहात्म्य, ब्रह्मा द्वारा सर्व प्रकार के पापों से मुक्ति हेतु प्रक्षालन), ५.३.२२१(, ६.९२(ब्रह्म कुण्ड का माहात्म्य, शूद्र को मोक्ष की प्राप्ति), ७.१.१४७(ब्रह्म कुण्ड का माहात्म्य, ब्रह्मा द्वारा तीर्थों का आह्वान), ७.१.१५०(ब्रह्मेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ७.१.२४५(ब्रह्मेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ७.१.२४८(ब्रह्मेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, स्व - दुहिता के दर्शन पर ब्रह्मा का काम के वशीभूत होना, पाप से मुक्ति के लिए लिङ्ग की स्थापना), ७.१.३१८(ब्रह्मेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ७.३.५३(ब्रह्मपद की उत्पत्ति व माहात्म्य ; सद्गति के लिए ब्रह्मा के पद का स्पर्श), हरिवंश ३.१७.४(शिर में निहित ब्रह्ममय तेज से चतुर्मुख ब्रह्मा के प्रादुर्भाव और ब्रह्मा द्वारा ब्रह्म प्राप्ति का वर्णन), महाभारत वन ३१३.४६(ब्रह्म द्वारा आदित्य के उन्नयन का कथन), शान्ति २१६.१९(परम ज्ञान के ब्रह्म होने का कथन), योगवासिष्ठ ३.१४.१८(जीव या जीवराशि की सत्ता का खण्डन करके एकमात्र अमल ब्रह्म की सत्ता का प्रतिपादन), ३.४४(जगत), ३.८५(ब्रह्म व आदित्य का संवाद), ४.४०(जगत एकता), ६.१.६७(ब्रह्म एक्य), ६.२.३५(पर ब्रह्म), ६.२.४३(ब्रह्म की एकतानता), ६.२.५२(ब्रह्म का स्वरूप), ६.२.१७२(जगत् के ब्रह्मत्व का प्रतिपादन), ६.२.१७३+ (ब्रह्मगीता में परमार्थ व निर्वाणोपदेश, ब्रह्माण्ड व तापसादि का उपाख्यान), ६.२.१७९(ब्रह्मगीता में ब्रह्ममयत्व का प्रतिपादन), ६.२.१८९(ब्रह्म एकता), ६.२.२०६(महाप्रश्न), महाभारत वन ३१३.४६(, लक्ष्मीनारायण १.२८३.३८(ब्रह्म के पात्रों में अनन्यतम होने का उल्लेख), २.१४०.१६(ब्राह्मक प्रासाद के लक्षण), २.२४६.१५(गुरु, व्रत, वेद तथा हरि रूप ब्रह्म की चतुष्पदी द्वारा ब्रह्मारोहण करने का निर्देश), २.२४६.२८(आचार्य के ब्रह्मलोकेश होने का उल्लेख), २.२५०.५७(भक्ति पाक के ब्रह्मता तथा ब्रह्मपाक के परम पद होने का उल्लेख ; दया, क्षमा आदि ब्रह्म के पन्थों के नाम), २.२५२.३०(भगवान् के ब्रह्मलोक मूर्द्धा, ईश्वरलोक हृदादि तथा जीवलोक चरण होने का उल्लेख ), २.२५२.४६(परब्रह्म, ब्रह्मप्रिया, अक्षर ब्रह्म, मुक्ता, मुक्तान्य नामक पंचविध ब्रह्मसृष्टि का उल्लेख), ३.३३.१७(लक्ष्मी का ब्रह्मचित्रधर नृप की कन्या सुधाक्षी रूप में जन्म का कथन), ३.३५.३६(अप्सराओं की इच्छा पूरणार्थ बृहद्ब्रह्मनारायण अवतार का वृत्तान्त), ३.४७(वधू गीता के अन्तर्गत साक्षात् परब्रह्म योग का निरूपण), ३.७५.८९(ब्रह्मदानों से सत्यलोक की प्राप्ति का उल्लेख), ४.२५(पर ब्रह्मस्वरूप योग निरूपण तथा विशिष्ट ब्रह्माऽद्वैतात्मक परब्रह्म का विवेचन ), द्र. चैत्यब्रह्म, प्रणद्ब्रह्म brahma ब्रह्मकूर्च नारद १.१२३.५३(ब्रह्मकूर्च चतुर्दशी व्रत की विधि), लिङ्ग १.१५(ब्रह्मकूर्च निर्माण व पान की विधि), लक्ष्मीनारायण २.५.८२(ब्रह्म के ह्रदय से उत्पन्न पुत्रों द्वारा ब्रह्मकूर्च असुर का वध, असुर के देह मलों से विभिन्न प्रकार की उत्पत्तियों का कथन ) brahmakoorcha/ brahmakuurcha/ brahmakurcha ब्रह्मगार्ग्य वायु ९८.९८/२.३६.९३(वसुदेव के पुरोहित के रूप में ब्रह्मगार्ग्य का उल्लेख ) ब्रह्मगुप्त कथासरित् ८.३.६१(ब्रह्मगुप्त के नाम हेतु का कथन), ८.७.१७(ब्रह्मगुप्त का प्रहस्त के साथ द्वन्द्व युद्ध),
ब्रह्मचर्य अग्नि
१५३(ब्रह्मचर्याश्रमधर्म
का निरूपण),
कूर्म २.१२(ब्रह्मचारी के नियम),
२.१४(ब्रह्मचारी के धर्म का कथन),
नारद १.२.५(,
१.४३.१०६(ब्रह्मचारी के धर्म का निरूपण),
पद्म
२.१२.७३(दुर्वासा के समक्ष प्रकट ब्रह्मचर्य का रूप
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दंडहस्तः सुप्रसन्नः कमंडलुधरस्तथा।),
३.५३(शिष्य/ब्रह्मचारी का धर्म),
भविष्य
१.१८२.३(ब्रह्मचर्याश्रम
का गायत्र रूप में उल्लेख
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गायत्रो ब्रह्मचारी तु प्राजापत्यो द्वितीयकः ।। Comments on Brahmcharya/celibacy ब्रह्मचारिणी हरिवंश १.३.४५(बृहस्पति - भगिनी, प्रभास नामक अष्टम वसु की भार्या, देवशिल्पी विश्वकर्मा की माता), ब्रह्मचारी ब्रह्माण्ड १.२.७.१७५(विद्यार्थी ब्रह्मचारी हेतु नियम), १.२.३३.१०(९ होत्रवह ब्रह्मचारियों के नाम), २.३.६.३९(क्रोधा व कश्यप के १० देवगन्धर्व पुत्रों में से एक), भागवत ७.१२.१(ब्रह्मचारी के नियमों का वर्णन), मत्स्य ४०.२(विद्यार्थी ब्रह्मचारी की सिद्धि के लिए अपेक्षित लक्षण), वायु ५९.२३(ब्रह्मचारी के साधु कहलाने के लिए अपेक्षित लक्षणों का उल्लेख), ६८.३८/२.७.३८(प्रवाही व कश्यप के १० देवगन्धर्व पुत्रों में से एक), विष्णु ३.९.१(विद्यार्थी ब्रह्मचारी के कर्तव्य ) brahmachaaree/ brahmachari ब्रह्मज्योति ब्रह्माण्ड १.२.१२.२५(शंस्य - पुत्र ८ उपस्थेय धिष्ण्य अग्नियों में से एक, अन्य नाम वसु, ब्रह्म स्थान में वास का उल्लेख), वायु २९.२१(शंस्य - पुत्र ८ उपस्थेय धिष्ण्य अग्नियों में से एक, अन्य नाम वसु, ब्रह्म स्थान में वास का उल्लेख ) brahmajyoti ब्रह्मणस्पति गणेश २.१०.२४(वसिष्ठ द्वारा महोत्कट गणेश को दिया गया नाम), भागवत २.३.२(ब्रह्मवर्चस कामी हेतु ब्रह्मणस्पति की अर्चना का निर्देश ) brahmanaspati ब्रह्मतार लक्ष्मीनारायण ३.९७.३२(विप्र ब्रह्मतार द्वारा पुत्र को संसार त्याग में प्रोत्साहित करना ) ब्रह्मतीर्थ ब्रह्माण्ड २.३.१३.५६(ब्रह्मतीर्थ में श्राद्ध के सर्वयज्ञ सम फल का उल्लेख), मत्स्य १९१.१०४(अमोहक अपर नाम वाले ब्रह्मतीर्थ में पितृ तर्पण के माहात्म्य का कथन), वायु ७७.५४/२.१५.५४(ब्रह्म तीर्थ में अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ) brahmateertha/ brahmatirtha ब्रह्मतुण्ड ब्रह्माण्ड २.३.१३.७५(ब्रह्म ह्रद का माहात्म्य , तुला का स्थान, वसिष्ठ द्वारा स्थाणु रूप होकर तप का स्थान), वायु ७७.७१(ब्रह्मानुग ह्रद का माहात्म्य, वसिष्ठ द्वारा स्थाणुभूत होकर तप, तुला का स्थान आदि ) brahmatunda ब्रह्मदण्ड ब्रह्माण्ड २.३.५३.४५(सगर - पुत्रों के ब्रह्मदण्ड से नष्ट होने का उल्लेख), २.३.५४.८(वही), २.३.५४.२५(वही), २.३.५६.३५(वही), कथासरित् १२.३.८६(त्रिकालज्ञ मुनि ब्रह्मदण्डी द्वारा मृगाङ्कदत्त द्वारा देखे गए आश्चर्यों के यथार्थ स्वरूप का वर्णन ) brahmadanda ब्रह्मदत्त देवीभागवत १.१८.४३(शुक की कन्या व अणुह - पुत्र), पद्म १.१०.६८(सन्नति - पति, पूर्व जन्मों में कौशिक पुत्रों का वृत्तान्त, पिपीलिका का संवाद सुनने का प्रसंग), १.३७.२२०(गौतम के शाप से ब्रह्मदत्त का गृध्र बनना, राम के दर्शन से मुक्ति, गृध्र व उलूक के विवाद का प्रसंग), ब्रह्माण्ड २.३.८.९४(अणुह व कीर्तिमती - पुत्र), भागवत ९.२१.२५(नीप व कृत्वी - पुत्र, गौ - पति, विश्वक्सेन - पिता), मत्स्य १५.१०(पञ्चाल नरेश व कृत्वी - पुत्र), २०(राजा, सन्नति - पति, पूर्व जन्म में कौशिक - पुत्र पितृवर्ती), २१(ब्रह्मदत्त द्वारा पिपीलिका संवाद श्रवण की कथा), २१.१६(वैभ्राज द्वारा ब्रह्मदत्त पुत्र प्राप्त करने का कथन, ब्रह्मदत्त आदि के पूर्व जन्मों का वृत्तान्त), वायु ७०.८६/२.९.८६ (कीर्तिमती व सत्त्वगुह - पुत्र), ७२.७४, ७३.२१(शुक - कन्या कीर्तिमती व अणुह - पुत्र), ९९.१८०/२.३७.१७५(अणुह - पुत्र, विश्वक्सेन - पिता), विष्णु ४.१९.४५(अणुह व कीर्ति - पुत्र, विश्वक्सेन - पिता), स्कन्द १.२.२.७६(पाञ्चाल ब्रह्मदत्त द्वारा द्विजों को शंख दान का उल्लेख), ५.१.६८.१७ (दुष्ट चरित्र वाले ब्रह्मदत्त की गौतमी तीर पर मरण से सद्गति, जन्मान्तर में ब्रह्मशर्मा), हरिवंश १.१८.५३(अणुह व कृत्वी - पुत्र), १.२०.३(अणुह व कृत्वी - पुत्र, पूर्व जन्म का वृत्तान्त , पूजनीया पक्षी प्रसंग), २.८३.१(ब्रह्मदत्त ब्राह्मण द्वारा षट्पुर में यज्ञ, असुरों का विघ्न, कृष्ण द्वारा रक्षा), ३.१०४(शाल्र्वदेशीय नृप ब्रह्मदत्त द्वारा शिवाराधन से हंस व डिम्भक नामक पुत्रों की प्राप्ति), वा.रामायण १.३३(चूली व सोमदा - पुत्र, कुशनाभ की १०० कुब्जा कन्याओं से विवाह), लक्ष्मीनारायण १.५७३.६०(ब्रह्मदत्त के यज्ञ में प्रेतों की मुक्ति की कथा), २.२४४.८०(ब्रह्मदत्त द्वारा द्विज को शंख निधि दान का उल्लेख), कथासरित् १.३.२७(हंस द्वारा राजा ब्रह्मदत्त को पूर्व जन्म के वृत्तान्त का निवेदन), ३.५.५४(वत्सराज द्वारा विजयार्थ वाराणसी के राजा ब्रह्मदत्त पर आक्रमण), ६.७.३७(किसान द्वारा ब्रह्मदत्त, सोमदत्त व विष्णुदत्त नामक तीन भाइयों की कथा), १७.१.२०(वाराणसी के राजा ब्रह्मदत्त द्वारा हंस दर्शन हेतु सरोवर का निर्माण, हंस दर्शन, हंस द्वारा पूर्व जन्म के वृत्तान्त का निवेदन ) brahmadatta ब्रह्मदेव लक्ष्मीनारायण ४.८(ब्रह्मदेव विप्र द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु पत्नी सहित बदरिकाश्रम में तप, बदरिका देवी से बदर - द्वय की प्राप्ति व पुत्र प्राप्ति आदि), ब्रह्मधना ब्रह्माण्ड २.३.७.८७(शण्ड पिशाच - पुत्री, राक्षस - पत्नी, ब्रह्मधान गण की माता), २.३.८.६१(ब्रह्मधान : दिवाचर राक्षसों की ३ जातियों में से एक, स्वरूप का कथन), वायु ६९.१२३/२.८.१२०(पिशाच - कन्या , अकर्णान्ता, अरोमा, सूर्य - अनुचर प्रजा की माता), ६९.१३२/२.८.१२८(ब्रह्मधान के १० पुत्रों के नाम ) brahmadhanaa ब्रह्मधाता मत्स्य १२१.१८(राक्षस, प्रहेति - पुत्र, वैभ्राज वन में वास ) This page was last updated on 04/28/09. |