पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Phalabhooti to Braahmi ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
|
|
Puraanic contexts of words like Brahmaani, Brahmaanda/universe, Brahmaavarta, Braahmana etc. are given here. ब्रह्मा, विष्णु, महेश वराह ७२.२(पृथक् कालों में तीनों देवों में एक की श्रेष्ठता का कथन ) ब्रह्माणी अग्नि १४६.१८(ब्रह्माणी देवी की आठ शक्तियों के नाम), मत्स्य २६१.२४(मातृका, प्रतिमा का रूप), वराह २७(मातृका, मद का रूप), वामन ५६.३(असुरों से युद्ध हेतु चण्डिका देवी के मुख से ब्रह्माणी की उत्पत्ति), स्कन्द ४.२.७२.५६(ब्रह्माणी द्वारा मौलि देश की रक्षा), ५.१.२८.३३(हंसवाहिनी ब्रह्माणी व ब्रह्मेश्वर शिव के माहात्म्य का कथन), ५.१.३७.१९(मातृका, ब्रह्मा द्वारा उत्पत्ति ) brahmaanee/ brahmani ब्रह्माण्ड गणेश १.१३.३३(ब्रह्मा द्वारा गणेश के उदर में अनेक ब्रह्माण्डों के दर्शन), पद्म ३.२(अव्याकृत ब्रह्म से ब्रह्माण्डोत्पत्ति का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त २.३.८(विश्व ब्रह्माण्ड वर्णन नामक अध्याय में पाताल से ब्रह्मलोक तक ब्रह्माण्ड की व्याप्ति का कथन, वैकुण्ठ के ब्रह्माण्ड से बाहर होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.२१(ब्रह्माण्ड का विस्तार), ४.२(ब्रह्माण्ड का विस्तार), भविष्य २.१.२(ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, विस्तार), ३.४.२५.३४(ब्रह्माण्ड शरीर से ग्रहादि की सृष्टि), ४.१७७(ब्रह्माण्ड दान विधि, सुद्युम्न द्वारा ब्रह्माण्ड दान से क्षुधा से मुक्ति), भागवत ५.१८+ (ब्रह्माण्ड के भिन्न - भिन्न वर्षों का वर्णन), १२.१३.८(ब्रह्माण्ड पुराण में १२ हजार श्लोक होने का उल्लेख), मत्स्य १५.२५(ब्रह्माण्ड के ऊपर मानस संज्ञक लोकों में सोमप पितरों की स्थिति का कथन), ५३.५६(ब्रह्माण्ड पुराण दान के फल का कथन), २६६.२८(अनन्त द्वारा ब्रह्माण्ड को मूर्द्धा पर पुष्पवत् धारण करने का उल्लेख), २७४.७(१६ महादानों में से एक), २७६(ब्रह्माण्ड दान विधि), वायु १०४.४१/२.४२.४१(माया द्वारा जीव में चित्र ब्रह्माण्ड को भित्तियों की भांति अर्पित करने का उल्लेख), १०७.४३/२.४५.४३(मरीचि - पत्नी धर्मव्रता का शाप से ब्रह्माण्ड में पावनी शिला होने का आख्यान), १०८.७/२.४६.७(ब्रह्माण्ड में मेरु की भांति गयासुर के शिर पर शिला होने का उल्लेख), शिव ०.१.१०(ब्रह्माण्ड की स्थिति व स्वरूप), ५.१५+ (पाताल, जम्बू द्वीप, भारत का वर्णन), स्कन्द १.२.३८-३९ (ब्रह्माण्ड के परिमाणान्तर्गत ऊर्ध्वलोक, अधोलोक की व्यवस्थिति का निरूपण), योगवासिष्ठ ३.३०(विचित्र ब्रह्माण्ड कोटि का वर्णन), ६.२.१७६ (ब्रह्मगीता में ब्रह्माण्ड उपाख्यान), लक्ष्मीनारायण १.३२२.१४६(सम्पुटाकार ब्रह्माण्ड दान से पति के पत्नी परायण होने का कथन), ३.११७.९५(भण्ड दैत्य द्वारा ब्रह्माण्डास्त्र व लक्ष्मी द्वारा व्यूहास्त्र के प्रयोग का उल्लेख), ३.१२६.५१(ब्रह्माण्ड दान की विधि व महत्त्व ) brahmaanda/ brahmanda ब्रह्मानन्द भविष्य ३.३.१.२५(परिमल - पुत्र, अर्जुन का अंश), ३.३.९.३८(परिमल व मलना - पुत्र, जन्म काल का कथन), ३.३.१०.५१(ब्रह्मानन्द द्वारा पिता से हरिनागर अश्व की प्राप्ति), ३.३.१७.२१(पृथ्वीराज - पुत्री वेला से विवाह की कथा), ३.३.३१.५(ब्रह्मानन्द के जिष्णु का अंश होने तथा कृष्णांश - सखा होने का उल्लेख), ३.३.३१.१५८(ब्रह्मानन्द द्वारा धुन्धुकार की पराजय, चामुण्ड आदि द्वारा छल से ब्रह्मानन्द का घात, ब्रह्मानन्द का कुरुक्षेत्र में मृत्यु से पूर्व समाधिस्थ होना आदि ), ३.३.३२.१९८(ब्रह्मानन्द द्वारा वेला को ब्रह्मानन्द का रूप धारण करके युद्ध में तारक के वध का निर्देश) brahmaananda/ brahmananda
ब्रह्मायन लक्ष्मीनारायण ३.८१.९६(शतानन्द व विनोदिनी - पुत्र), ३.२१०.३७(ब्रह्मायन ऋषि के उपदेश से यज्ञराध पुष्कस द्वारा मोक्ष प्राप्ति का वृत्तान्त ) ब्रह्मावर्त्त भागवत १.१७.३३(परीक्षित् द्वारा ब्रह्मावर्त्त में कलियुग के निवास का निषेध), ३.२१.२५(प्रजापति - पुत्र मनु द्वारा ब्रह्मावर्त्त में निवास का उल्लेख), ४.१९.१(पृथु द्वारा प्राची सरस्वती वाले ब्रह्मावर्त में १०० अश्वमेध यज्ञ करने का उल्लेख), ५.४.१०(ऋषभ व जयन्ती के ९९ पुत्रों में से एक), ५.४.१९+ (ऋषभ देव द्वारा ब्रह्मावर्त्त में अपने पुत्रों को उपदेश), मत्स्य २२.६९(श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थों में से एक), १९०.७(ब्रह्मावर्त्त में ब्रह्मा की नित्य स्थिति का उल्लेख), १९१.६९(ब्रह्मावर्त्त में आदित्य के कन्यागत होने पर श्राद्ध के महत्त्व का कथन), स्कन्द ४.२.६९.१२(ब्रह्मावर्त्त कूप का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.३१(ब्रह्मा के तप का स्थान, माहात्म्य ) brahmaavarta/ brahmavarta ब्रह्मापेत ब्रह्माण्ड १.२.१८.१७(राक्षस, प्रहेति - पुत्र, कुबेर अनुचर, वैभ्राज वन में वास), १.२.२३.२२(राक्षस, सूर्य रथ में स्थिति), २.३.७.९८(ब्रह्मधाना के ९ पुत्रों में से एक), भागवत १२.११.४३(ब्रह्मापेत आदि की आश्विन् मास में सूर्य रथ पर स्थिति का उल्लेख), वायु ४७.१६(राक्षस, प्रहेत- - तनय, वैभ्राज वन में वास), ६२.१८४(ब्रह्मोपेत : पृथ्वी का दोग्धा), विष्णु २.१०.१६(ब्रह्मोपेत आदि की माघ मास के सूर्य के साथ स्थिति का उल्लेख ), द्र. रथ सूर्य brahmaapeta/brahmopeta ब्रह्मायन लक्ष्मीनारायण ३.२१०.३७(ब्रह्मायन ऋषि के उपदेश से यज्ञराध पुष्कस द्वारा मोक्ष प्राप्ति का वृत्तान्त ) ब्रह्मास्त्र विष्णु ४.२०.५२(ब्रह्मास्त्र से अभिमन्यु व उत्तरा - पुत्र परीक्षित् की मृत्यु व पुनर्जीवन का कथन), महाभारत शान्ति २.१०(कर्ण द्वारा द्रोणाचार्य से ब्रह्मास्त्र प्राप्ति की इच्छा व्यक्त करना, द्रोण द्वारा ब्रह्मास्त्र न देने का कारण बताना, कर्ण का ब्रह्मास्त्र प्राप्ति हेतु परशुराम के पास जाना), ३.३०(परशुराम द्वारा कर्ण को अन्त समय में ब्रह्मास्त्र भूलने का शाप), लक्ष्मीनारायण ३.१८६.७८(साधु के विज्ञान में ब्रह्मास्त्र की स्थिति का उल्लेख ), द्र. ब्रह्मशिर brahmaastra/ brahmastra ब्रह्मिष्ठ मत्स्य ५०.६(मुद्गल - पुत्र, इन्द्रसेन - पिता, अजमीढ वंश), वायु ७०.२७/२.९.२७(असित व एकपर्णा - पुत्र ) brahmishtha ब्रह्मेश्वर स्कन्द ५.१.२८.३६(ब्रह्मेश्वर शिव का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.२.६५(ब्रह्मेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, पुलोमा दैत्य के विनाशार्थ ब्रह्मा द्वारा पूजा ) ब्रह्मेषु ब्रह्माण्ड २.३.३.३९(रुक्मकवच के ५ पुत्रों में से एक, राजा, अन्य नाम रुक्मेषु), वायु ९५.२९/२.३३.२९(रुक्मकवच के ५ पुत्रों में से एक, राजा, अन्य नाम रुक्मेषु), ब्रह्मोदन द्र. ब्रह्मौदन ब्रह्मोद्भेद वराह २१५.९४(ब्रह्मोद्भेद तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ) ब्रह्मौदन ब्रह्माण्ड १.२.१२.८(ब्रह्मोदत्त : लौकिक अग्नि - पुत्र, अपर नाम भरत, वैश्वानर अग्नि - पिता - विश्रुतो लौकिकोऽग्निस्तु प्रथमो ब्रह्मणः सुतः। ब्रह्मो दत्ताग्निसत्पुत्रो भरतो नाम विश्रुतः ।) वायु २९.७ (अग्नि का नाम, अन्य नाम भरत - वैद्युतो लौकिकाग्निस्तु प्रथमो ब्रह्मणः सुतः। ब्रह्मौदनाग्निस्तत्पुत्रो भरतो नाम विश्रुतः ।। ), लक्ष्मीनारायण ३.३२.८(भरत अग्नि – पिता - अग्नेश्चतुर्थं पुत्रं ब्रह्मौदनाग्निमभक्षयत् । ब्रह्मौदनाग्निपुत्रं च भरतं चाप्यभक्षयत् ।। ) brahmaudana ब्राह्म भागवत ३.११.३४(ब्राह्म कल्प का निरूपण तथा शब्दब्रह्म संज्ञा), ३.१२.४२ (ब्रह्मचारी की ४ वृत्तियों में से एक, द्र. टीका), १२.१३.४(ब्राह्म पुराण में १० हजार श्लोक होने का उल्लेख), मत्स्य ५३.१३(वैशाख पूर्णिमा को ब्राह्म पुराण दान का संक्षिप्त माहात्म्य : ब्रह्म लोक प्राप्ति), २००.४(ब्राह्मपुरेयक : वसिष्ठ वंश के एकार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वायु ६६.४०/२.५.४०(मध्याह्न/दिन के मुहूर्तों में से एक), १०४.१६/२.४२.१६(६ दर्शनों में से एक), १०४.८१/ २.४२.८१ (ब्राह्म पीठ की ब्रह्मरन्ध्र में स्थिति का उल्लेख), विष्णु ३.११.५(ब्राह्म मुहूर्त में उठकर धर्म, अर्थ का चिन्तन करने का निर्देश), ३.११.२४(८ प्रकार के विवाहों में प्रथम ), द्र. पुराण braahma ब्राह्मील लक्ष्मीनारायण २.२२४.५९+ (ब्राह्मील राष्ट} में आयोजित यज्ञ में कृष्ण का आगमन, यज्ञ का विस्तृत वर्णन), २.२९७.१००(ब्राह्मीली स्त्रियों के निवास में द्यौ द्वारा देवपूजा रत कृष्ण के दर्शन का उल्लेख ) braahmeela/ brahmila ब्राह्मण कूर्म २.१२(ब्राह्मण के कर्त्तव्य / कर्म), २.१५.२७(ब्राह्मण के लक्षणों का कथन), देवीभागवत ३.१०.३१(मूर्ख ब्राह्मण की निन्दा, गोभिल द्वारा शाप का प्रसंग), १२.९(गौतम के आश्रम में ब्राह्मणों का पालन, ब्राह्मणों की कृतघ्नता पर गौतम द्वारा शाप), पद्म १.१५.६४(ब्राह्मण के लक्षण), १.४६.१००(ब्राह्मण की महिमा, ब्राह्मण हेतु संस्कार की विधि), १.४७.१(अधम ब्राह्मण के लक्षण, मुक्ति उपाय, गरुड द्वारा ब्राह्मण भक्षण से उत्पन्न व्यथा), २.१८(वसिष्ठ द्वारा पूर्वजन्म में शूद्र वंशोत्पन्न सोमशर्मा ब्राह्मण को वर्तमान में ब्राह्मण वंशोत्पत्ति के हेतु का कथन), ४.१४(ब्राह्मण का माहात्म्य, भीम शूद्र द्वारा ब्राह्मण सेवा से मुक्ति), ५.९६.३१(यज्ञदत्त नामक ब्राह्मण और यम का संवाद, यम द्वारा नरकवासियों के पाप तथा स्वर्गवासियों के पुण्य का वर्णन), ६.१७७(गीता के तृतीय अध्याय के माहात्म्य के वर्णनान्तर्गत जड नामक ब्राह्मण का वृत्तान्त : स्वधर्म परित्याग कर परधर्म निरत होने से जड को कर्म बन्धन की प्राप्ति, पुत्र द्वारा तृतीय अध्याय के पाठ से कर्म बन्धन से मुक्ति), ७.२१.१(ब्राह्मण की महिमा, भद्रक्रिय ब्राह्मण व भषक/श्व की कथा ), ब्रह्मवैवर्त्त १.११(ब्राह्मण का माहात्म्य), ४.२१(इन्द्रयाग की अपेक्षा ब्राह्मण का महत्त्व), ब्रह्माण्ड १.२.७.१६५(ब्राह्मण को प्रजापति के लोक में स्थान), १.२.३१.१२(द्वापर में वेदों का अर्थ करने के लिए ब्राह्मण ग्रन्थों के प्रवर्तन का कथन), १.२.३१.४०(कलियुग में अन्त्य योनि आदि के ब्राह्मणों से सम्बन्ध का कथन), १.२.३३.१(ब्राह्मणों के प्रवक्ता ऋषिपुत्रों के नाम), १.२.३५.७३(वेदों के ब्राह्मण ग्रन्थ सम्बन्धी कथन), २.३.१५.३२(पंक्ति पावन ब्राह्मण के लक्षण), २.३.१९.२५(पंक्तिपावन ब्राह्मण के लक्षण), भविष्य १.२.१२९(नरों में ब्राह्मण तथा ब्राह्मणों में विद्वान् की श्रेष्ठता का कथन), १.१८४(ब्राह्मण के लिए वर्जित कर्मों तथा उनके प्रायश्चित्तों का वर्णन), २.१.५(ब्राह्मण की प्रशंसा), २.१.१७.३(सहस्र याग में अग्नि का नाम), ३.४.२३.९८(ब्राह्मण वर्ण : पितरों के तृप्तिकर्त्ता), ४.१.४९(ब्राह्मण शुश्रूषा का माहात्म्य), भागवत २.१.३७(ब्राह्मण के विराट् पुरुष का मुख होने का उल्लेख), ४.७.४५(ब्राह्मणों द्वारा दक्ष यज्ञ के रक्षक भगवान् हृषीकेश की स्तुति ), ७.११.२१(ब्राह्मण के लक्षण), ८.५.४१(ब्राह्मण के विराट पुरुष का मुख होने का उल्लेख), १०.४.३९(कंस के परामर्शदाताओं द्वारा सनातन धर्म के मूलों में एक ब्राह्मणों के वध का परामर्श), १०.८.६(ब्राह्मण के जन्म से ही गुरु होने का उल्लेख), १०.२४.२०(विप्र को ब्रह्म वृत्ति करने का निर्देश), ११.१७.१६(ब्राह्मण की प्रकृति/लक्षणों का कथन), ११.१७.४०(ब्राह्मण धर्म का निरूपण), मत्स्य १४४.१२(द्वापर में वेदों का अर्थ करने के लिए ब्राह्मण ग्रन्थों के प्रवर्तन का कथन), वराह १६५.६३(मथुरावासी ब्राह्मण की प्रशंसा), ७१(गौतम द्वारा ब्राह्मणों को शाप का प्रसंग), वामन ९०.३४(कटाह में विष्णु का ब्राह्मणप्रिय नाम), वायु ५८.४१(कलियुग में शूद्रों के ब्राह्मणाचारी और ब्राह्मणों के शूद्राचारी होने का कथन), ५९.१३८/१.५९.११३(मन्त्रों के अर्थ करने में ब्राह्मण ग्रन्थों के योगदान का कथन), विष्णु १.६.६(ब्राह्मण आदि की ब्रह्मा के मुख आदि से सृष्टि का उल्लेख), १.६.३४(ब्राह्मण आदि वर्णों के प्राजापत्य आदि स्थानों का कथन), विष्णुधर्मोत्तर २.३२(ब्राह्मण की प्रशंसा), ३.२९०(ब्राह्मण की शुश्रूषा), स्कन्द १.२.५.१०९(नारद के प्रश्न करने पर सुतनु नामक बालक द्वारा ब्राह्मण के ८ भेदों का निरूपण), १.२.५.११०(ब्राह्मण के भेद), २.५.१५(ब्राह्मण को भोजन का माहात्म्य), ३.२.९.२५(ब्राह्मणों के गोत्र, प्रवर, रक्षक शक्ति), ३.२.३२+ (श्रीमाता देवी के वचनानुसार राम द्वारा धर्मारण्य क्षेत्र में ब्राह्मणों के निवास, भोजन, रक्षण आदि की व्यवस्था का निरूपण), ३.२.३९(ब्राह्मणों के गोत्र, प्रवर, कुलदेवी), ४.१.२.९५(उत्तम ब्राह्मण के लक्षण), ५.१.४३.१२(त्रिपुरासुर के त्रिपुर में रहने वाले ब्राह्मणों की सन्मार्ग विमुखता से जगत् के नष्टप्राय होने का कथन), ५.२.६०.१४(चाण्डाल योनि में उत्पन्न मतङ्ग द्वारा ब्राह्मणत्व प्राप्ति हेतु तप, इन्द्र द्वारा ब्राह्मणत्व प्राप्ति की दुर्लभता, पश्चात् उपाय का कथन, मतङ्ग को ब्राह्मणत्व की प्राप्ति), ५.२.६८.१९(सभी जन्तुओं के प्रति मित्रभाव रखने वाले की ब्राह्मण संज्ञा का उल्लेख), ५.३.३८.१९(ब्राह्मणों के मन्युप्रहरण होने तथा मन्यु के चक्र से भी क्रूरतर होने का उल्लेख), ५.३.१३३.२७(राजा की वृक्ष से तथा ब्राह्मणों की मूल से उपमा, मूल की रक्षा से वृक्ष की रक्षा का कथन), ५.३.१३३.३६(क्रोध से ब्राह्मण को सतत् दरिद्र और मूर्ख होने का शाप प्रदान ?), ५.३.१७०.२४( ब्राह्मण की अवध्यता का उल्लेख), ५.३.१८२.२२(रमा - भृगु विवाद में अस्पष्टवादिता के कारण रमा द्वारा ब्राह्मणों को शाप), ६.१९५+ (ब्राह्मणी : छान्दोग्य ब्राह्मण - पत्नी, रत्नावती - सखी, तप, शूद्री - ब्राह्मणी तीर्थ का माहात्म्य), ७.१.२२.६४(शिव प्रोक्त ब्राह्मण महिमा), ७.१.२९.४०(समुद्र द्वारा मांस मिश्रित भोजन प्रस्तुत करने से ब्राह्मण द्वारा समुद्र को शाप), ७.१.१०६ (ब्राह्मण की महिमा का वर्णन), महाभारत वन १८०.२०(ब्राह्मण के लक्षण), ३१३.४९(ब्राह्मणों के देवत्व, धर्म, मानुष भाव आदि का कथन, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद), ३१३.८६(श्राद्ध काल के ब्राह्मण होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद), ३१३.१०७(आचार के कारण ही द्विजत्व होने का कथन, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद), शान्ति ३(स्वयं को ब्राह्मण बताने के कारण कर्ण द्वारा परशुराम से शाप प्राप्ति), २५१(ब्रह्मवेत्ता ब्राह्मण के लक्षण), अनुशासन ३५(ब्राह्मणों की महत्ता का वर्णन), ३६(ब्राह्मण की प्रशंसा के विषय में इन्द्र व शम्बरासुर का संवाद), ७०(ब्राह्मण के धन का अपहरण करने की हानि के संदर्भ में राजा नृग के कूप में पतन का उपाख्यान), आश्वमेधिक २०(ब्राह्मण गीता का आरम्भ), ३२(ब्राह्मण रूप धारी धर्म व जनक का संवाद), ३४.१२(मन के ब्राह्मण व बुद्धि के ब्राह्मणी होने का उल्लेख, ब्राह्मण गीता का उपसंहार), लक्ष्मीनारायण १.५७३.३२(पार्वती के शाप से ब्राह्मणों द्वारा श्वान योनि की प्राप्ति, राजा रविचन्द्र द्वारा पुण्यदान से मुक्ति), ३.९१.११९(ब्रह्मयोग से ब्राह्मण बनने का उल्लेख), कथासरित् १०.८.३(ब्राह्मण व नकुल की कथा ) braahmana/ brahmana This page was last updated on 04/09/22. |