पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Phalabhooti to Braahmi ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
|
|
Puraanic contexts of words like Buddha, Buddhi/intellect, Budha/mercury, Brihat / wide etc. are given here. बुद्ध अग्नि १६(बुद्ध अवतार की कथा), ब्रह्माण्ड ३.४.१.११४(भौत्य मनु के पुत्रों में से एक), भविष्य ३.४.२१.२५(गौतम बुद्ध : मय का अंश, बुद्ध द्वारा तीर्थों में मायामय यन्त्र की स्थापना, बौद्ध धर्म का प्रचार), ३.४.२५.९१(प्रथम सावर्णिक मन्वन्तर में कुम्भ राशि में बुद्ध की उत्पत्ति), भागवत १.३.२४(कलियुग में कीकटों में अजन - पुत्र के रूप में विष्णु के बुद्ध अवतार का उल्लेख), ६.८.१९(बुद्ध से पाखण्डगण व प्रमाद से रक्षा की प्रार्थना), मत्स्य ४७.२४७(नवम विष्णु अवतार के रूप में बुद्ध का उल्लेख), ५४.१९(नक्षत्र पुरुष व्रत के अन्तर्गत चित्रा नक्षत्र में विष्णु के ललाट की बुद्ध रूप में पूजा का निर्देश), वराह ४७(श्रावण शुक्ल एकादशी में करणीय बुद्ध द्वादशी व्रत का वर्णन), वायु १०४.८२/२.४२.८२(बौद्ध पीठ : छाया में स्थिति), वा.रामायण ४.१२.१७(वालि व सुग्रीव के युद्ध की बुध व मङ्गल ग्रहों के युद्ध से तुलना), स्कन्द २.४.७.७(द्रविड देशीय ब्राह्मण बुद्ध की अनाचाररता पत्नी की दीपदान से मुक्ति की कथा), लक्ष्मीनारायण १.४९८.४१(बोद्ध : पाप से गति के अवरुद्ध न होने वाले ४ विप्रों में से एक), २.२६८.३(गुरु प्रबोध का शिष्य राजा अमोहाक्ष के राजभोगों को त्याग वन गमन का वृत्तान्त, राजा को उपदेश), कथासरित् २.३.१५(बुद्धदत्त : चण्डमहासेन का मन्त्री ), द्र. प्रबुद्ध buddha बुद्धि अग्नि ८४.३४(बुद्धि के भोग होने का उल्लेख?), गणेश २.६४.३६ (देवान्तक से युद्ध में सिद्धियों की पराजय पर बुद्धि द्वारा युद्ध का वर्णन), २.८५.२८(बुद्धीश गणेश से प्राच्यत: रक्षा की प्रार्थना), २.१०९.१०(गणेश के सिद्धि - बुद्धि से विवाह का वृत्तान्त), गरुड १.२१.४(वामदेव शिव की १३ कलाओं में से एक), गर्ग ३.९.२१(कृष्ण की बुद्धि से यवस गुल्मों के प्राकट्य का उल्लेख), देवीभागवत ११.२२.३३(प्राणाग्नि होत्र में पत्नी का रूप), नारद १.४४.३२(पांच इन्द्रिय, छठां मन, सातवीं बुद्धि व आठवां क्षेत्रज्ञ होने का उल्लेख, बुद्धि के कार्य का कथन), १.६६.९४(कृष्ण की शक्ति बुद्धि का उल्लेख), पद्म ४.८६.९७(दुर्गा के मर्त्य स्तर पर बुद्धि होने का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ३.७.७४(बुद्धि के ईश्वरी/प्रकृति तथा मेधा आदि के उसकी कलाएं होने का कथन), ४.८६.९७(मनुष्य में बुद्धि के दुर्गा स्वरूप होने का उल्लेख), ४.९४.१०७(प्रकृति के बुद्धि रूपा होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.१.३.३८(अबुद्धिपूर्व प्रथम सर्ग का कथन), १.१.५.१००(ब्रह्मवृक्ष में बुद्धि स्कन्ध होने का उल्लेख), १.१.५.१०४(३ अबुद्धिपूर्वक प्राकृत सर्ग तथा ६ बुद्धिपूर्वक वैकृत सर्गों का कथन), ३.४.१९.१७(बुद्ध~याकर्षणी : चन्द्रमा की १६ शक्तियों में से एक), ३.४.३६.६९(चन्द्रमा की कला रूपी गुप्त योगिनी संज्ञक १६ शक्तियों में से एक), भविष्य १.२.१२९(प्राणियों में बुद्धिमान व बुद्धिमानों में नर की श्रेष्ठता का कथन), ३.२.१.५(बुद्धिदक्ष द्वारा पद्मावती कन्या के संकेतों को समझ कर स्वमित्र वज्रमुकुट का पद्मावती से मिलन कराने की कथा), ३.२.११.१२(बुद्धि प्रकाश : धर्मवल्लभ - मन्त्री, नृप हेतु कन्या का अन्वेषण, प्राप्ति, राज्यविनाश के भय से मरण), ३.४.७.२२(राजसी, सात्त्विकी व तामसी बुद्धि के पति रूप में क्रमश: ब्रह्मा, विष्णु व महेश का उल्लेख), भागवत ४.१.५१(दक्ष - कन्या, धर्म - पत्नी, अर्थ - माता), ६.५.७, १४(बुद्धि का बहुरूपा स्त्री, स्वैरिणी आदि रूप में कथन), मत्स्य ३.२७(पांच गुणों वाली गन्ध/भूमि के बुद्धि होने का उल्लेख), ४.२५(मनु व शतरूपा की ७ सन्तानों में से एक), २६०.५५(विनायक के ऋद्धि - बुद्धि से युक्त होने का उल्लेख), मार्कण्डेय १००.३६/९७.३६(रैवत मन्वन्तर को सुनने से बुद्धि प्राप्ति का उल्लेख), वायु ४.३३/१.४.३१(बुद्धि शब्द की निरुक्ति), ९.११४/१.९.१०६(ब्रह्मवृक्ष रूपी पुरुष में स्कन्ध के बुद्धि होने का उल्लेख), १०.२५(दक्ष की धर्म को प्रदत्त १३ कन्याओं में से एक), १०.३६(बोध व अप्रमाद - माता), ५९.७४(महान् शरीर में बुद्धि के चतुर्विध रूपों ज्ञान, वैराग्य, ऐश्वर्य व धर्म के रूप में प्रकट होने का उल्लेख), ६६.१८/२.५.१८(तुषित देवों में से एक), १०२.२०/२.४०.२०(प्रलय काल में बुद्धि लक्षण वाले महान् द्वारा भूतादि को ग्रसने का उल्लेख), १०३.१४/२.४१.१४(प्रधान के सर्व कार्य बुद्धि पूर्व होने तथा अबुद्धिपूर्व क्षेत्रज्ञ द्वारा इन गुणों को नियन्त्रित करने का कथन), विष्णु १.८.१८(विष्णु के बोध व लक्ष्मी के बुद्धि होने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर ३.२०६(बुद्धि प्राप्ति व्रत), शिव २.४.२०.२(विश्वरूप - कन्या, गणेश से विवाह, लाभ नामक पुत्र की प्राप्ति), स्कन्द १.२.५.९५(बुद्धि के बहुरूपा स्त्री से एकरूपा बनने का कथन), २.७.१९.२१(बुद्धि के शम्भु? से श्रेष्ठ व प्राण से अवर होने का उल्लेख), ४.२.८८.६०( पार्वती के रथ में सारथि), ५.२.६४.१३(बुद्धि स्त्री द्वारा राजा पशुपाल को दस्युओं से मुक्ति हेतु प्रबोधन), महाभारत वन १८१.२४(मन व बुद्धि में अन्तर), शान्ति १७.२१(बुद्धि की परिभाषा), २४७.१६(बुद्धि द्वारा महाभूतों के गुणों को इन्द्रियों से जोडने का कथन), २४८(इन्द्रियों द्वारा अर्थ के निर्णय में बुद्धि का महत्त्व), २५४.९(शरीर रूपी पुर में बुद्धि के स्वामिनी व मन के मन्त्री होने का कथन), २५५.१०(बुद्धि के ५ मुख्य गुणों के नाम तथा विस्तृत रूप में ६० गुण होने का कथन), २७४.१२(वाक् - मन को बुद्धि द्वारा व बुद्धि को ज्ञानचक्षु द्वारा वश में करने का निर्देश), ३०१.१४(बुद्धि के ७ गुणों का उल्लेख), आश्वमेधिक २५.१५(ब्रह्मात्मा/बुद्धि के उद्गाता होने का उल्लेख), ३४.१२(ब्राह्मण गीता के अन्तर्गत मन के ब्राह्मण व बुद्धि के ब्राह्मणी होने का उल्लेख), योगवासिष्ठ ४.४२.२३३(वासना ग्रस्त होने पर अहंकार के बुद्धि और बुद्धि के मन बनने का कथन), ६.१.१२८.११(बुद्धि का ब्रह्मा में न्यास), ६.२.८७.११(अहं भाव के घनीभूत होने पर बुद्धि तथा बुद्धि के घनीभूत होने पर मन संज्ञा का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.१०८.५(विश्वरूप प्रजापति द्वारा स्वकन्याओं सिद्धि व बुद्धि का गणेश से विवाह, बुद्धि से लाभ पुत्र की उत्पत्ति का कथन), १.२९९.३(विश्वकर्मा की पुत्रियों सिद्धि व बुद्धि द्वारा अधिक मास सप्तमी व्रत से गणेश रूप धारी कृष्ण की पति रूप में प्राप्ति का वृत्तान्त), १.५४७.५५(त्रिगुणात्मिका बुद्धि दासी द्वारा राजा से महान् तथा अहंकार आदि पुत्रों की उत्पत्ति, पुत्रों व प्रपौत्रों द्वारा राजा के धर्षण आदि का वृत्तान्त), २.७८.३८(आत्मा पति तथा बुद्धि पत्नी का कथन), २.२५५.३८ (बुद्धि तत्त्व के अन्ता, ममता आदि ७ भावों के नाम), ४.२४.२६ (बुद्धि के प्रमोक्षिणी दारा होने का उल्लेख), कथासरित् ७.९.१४७(कर्पूरक - पत्नी, कर्पूरिका - माता), १०.१०.१३६(बुद्धिप्रभ नृप की दिव्य पुत्री हेमप्रभा का वृत्तान्त), १०.१०.१८१(बुद्धिप्रभ : नृप, रत्नाकार नगरवासी, रत्नरेखा - पति, हेमप्रभा - पिता), १२.८.६३(बुद्धिशरीर : प्रतापमुकुट राजा का मन्त्रि - पुत्र, वज्रमुकुट - मित्र ), द्र. गम्भीरबुद्धि, धृष्टबुद्धि, प्रपञ्चबुद्धि buddhi बुद्धिसागर नारद १.१२.७२(वीरभद्र - मन्त्री, तडाग निर्माण के पुण्य से स्वर्ग प्राप्ति ) बुद्बुद पद्म १.४०.१४२(जल में ग्रह - नक्षत्रों के बुद्बुद रूप होने का उल्लेख ), द्र. बुदबुद बुध अग्नि १८४.९(बुधाष्टमी व्रत की विधि एवं कथा – माता-पिता का नरक से उद्धार आदि - अष्टमी बुधवारेण पक्षयोरुभयोर्यदा ॥ तदा व्रतं प्रकुर्वीत अथवा सगुडाशिता ।), गणेश १.७६.११(दूर्व व शाकिनी - पुत्र, सावित्री - पति, वेश्याकर्म में रति, माता - पिता व पत्नी की हत्या -निशीथे स्वप्रियां प्राह बुधः पुत्रो गतः क्व नु।विना तेन वृथा गेहं विना दीपं यथा निशि ॥ ), गरुड १.१३२(बुध अष्टमी व्रत का माहात्म्य : कौशिक द्विज को धन की प्राप्ति, विजया को पति की प्राप्ति - रम्भा भार्या तस्य चासीत्कौशिकः पुत्र उत्तमः ॥ दुहिता विजयानाम्नी व (ध) नपालो वृषोऽभवत् ।), ३.२२.२८(बुध के ११ लक्षणों से युक्त होने का उल्लेख - गङ्गा द्वादशभिर्युक्ता बुध एकादशैर्युतः ।शनिस्तु दशसंख्याकैः पुष्करो नवभिर्युतः ॥), ३.२९.३०(अग्नि व स्वाहा-पुत्र, चन्द्र-पुत्र, अभिमन्यु रूप में अवतरण - स्वाहाकारो मन्त्ररूपाभिमानी स्वाहेति संज्ञामाप सदैव वीन्द्र । अग्नेर्भार्यातो बुद्धिमान् संबभूव ब्रह्माभिमानी चन्द्रपुत्रो बुधश्च ॥), देवीभागवत ०.३.२६(इला बने सुद्युम्न का सोम - पुत्र बुध के आश्रम में प्रवेश, पुरूरवा का जन्म), १.१०.८४(सोम व तारा से बुध की उत्पत्ति की कथा), ९.२२.६(बुध का शङ्खचूड- सेनानी घृतपृष्ठ से युद्ध - बुधश्च घृतपृष्ठेन रक्ताक्षेण शनैश्चरः ॥), पद्म १.१२.४५(सोम व तारा - पुत्र, इला व बुध से पुरूरवा का जन्म – सर्वार्थशास्त्रविद्विद्वान्हस्तिशास्त्रप्रवर्त्तकः।नामयद्राजपुत्रोयं विश्रुतो राजवैद्यकः।), ६.२१५.४७(मुनि - पुत्र के आक्षेप पर बुध द्वारा मुनि - पुत्र को कुण्डत्व का शाप - इत्याकर्ण्य पितुर्वाक्यं जहासोच्चैर्मुनेः सुतः ।उवाच च स्वपितरं कुंडोऽयं स्वैरिणीसुतः ।), ब्रह्म १.५.१६(चन्द्रमा - पुत्र, इला से रति की प्रार्थना, पुरूरवा पुत्र की उत्पत्ति), १.७.३२(सोम व तारा से बुद्ध की उत्पत्ति, पुरूरवा – पिता-बुध इत्यकरोन्नाम तस्य बालस्य धीमतः।प्रतिकूलञ्च गगने समभ्युत्तिष्ठते बुधः॥ ), १.१६.१३(रोगनाशक तन्त्र निर्माण में दक्ष सोलह व्यक्तियों में से एक बुध द्वारा सर्वसार नामक तन्त्र का निर्माण), २.३८.६३(बुध का इला से विवाह, पुरूरवा का जन्म), ब्रह्मवैवर्त्त १.१६.२०(१६ आयुर्वेद शास्त्र प्रणेताओं में चन्द्रसुत द्वारा सर्वसार नामक चिकित्सा शास्त्र की रचना का उल्लेख - सर्वसारं चन्द्रसुतो जाबालस्तन्त्रसारकम् ।।), २.६१.९२ (बुध की चित्रा पत्नी से चैत्र का जन्म - स एव नन्दनवने चित्रां संप्राप्य निर्जने ।।..बभूव राजा चित्रायां चैत्रो वै मण्डलेश्वरः ।।), ब्रह्माण्ड १.२.२४.९०(त्विषि – पुत्र - बुधो मनोहरश्चैव त्विषिपुत्रस्तु स स्मृतः ।।), २.३.६५.३८(बुध जन्म का निरूपण - अथो तारासृजद्गर्भं ज्वलन्तमिव पावकम् ॥ जातमात्रोऽथ भगवान्देवानामाक्षिपद्वपुः ।), भविष्य १.३४.२२(बुध ग्रह का कर्कोटक नाग से तादात्म्य - तक्षकं भूमिपुत्रं तु कर्कोटं च बुधं विदुः । ।), ३.४.२५.३७(बुध की ब्रह्माण्ड के घ्राण से उत्पत्ति, ब्रह्म सावर्णि मन्वन्तर की रचना - ब्रह्माण्डघ्राणतो जातो बुधोऽहं नाथ किङ्करः । निर्मितं ब्रह्मसावर्णं मया तात नमो नमः । । ), ४.५४(बुधाष्टमी व्रत का वर्णन, श्यामला – माता ऊर्वशी की नरक से मुक्ति), मत्स्य ११.५५(इला से समागम हेतु बुध द्वारा द्विज रूप धारण - विशिष्टाकारवान् दण्डी सकमण्डलु पुस्तकः। वेणुदण्डकृतानेक पवित्रक गणित्रकः।। ), २४.३(सोम - पुत्र बुध के जन्म का वृत्तान्त, हस्ति शास्त्र प्रवर्तक आदि गुणों का कथन, भूतल के राज्य पर अभिषेक आदि- सर्वार्थशास्त्रविद् धीमान् हस्तिशास्त्रप्रवर्तकः।। नामयद्राजपुत्रीयं विश्रुतं गजवैद्यकम्।), ९३.११(ग्रह शान्ति के अन्तर्गत बुध की पूर्वोत्तर दिशा में स्थिति, बुध हेतु देय वस्त्र, बलि, मन्त्र आदि -मध्ये तु भास्करं विन्द्याल्लोहितं दक्षिणेन तु।उत्तरेण गुरुं विन्द्याद्बुधं पूर्वोत्तरेण तु।।), १२७.१(ग्रहों में बुध के रथ के स्वरूप का कथन), इन्होंने व्रतचर्या की और उसकी समाप्ति होने पर ये अदितिदेवी के यहाँ भिक्षा के लिये गये और बोले, 'मुझे भिक्षा दीजिये' भिक्षा न मिलनेपर इनके द्वारा अदिति- को शाप- अथ भिक्षाप्रत्याख्यानरुषितेन बुधेन ब्रह्मभूतेन विवस्वतो द्वितीये जन्मन्यण्डसञ्ज्ञितस्याण्डं मारितमदित्याः (महाभारत शान्ति० ३४२ । ५६ ), 342.69(बुध का हृषीकेश से साम्य - इडोपहूतयोगेन हरे भागं क्रतुष्वहम् । वर्णश्च मे हरिश्रेष्ठस्तस्माद्धरिरहं स्मृतः ॥), लिङ्ग १.६०.२३(विश्वकर्मा नामक सूर्य रश्मि द्वारा बुध ग्रह का पालन - दक्षिणे विश्वकर्मा च रश्मिर्वर्धयते बुधम्।।विश्वव्यचास्तु यः पश्चाच्छुक्रयोनिः स्मृतो बुधैः।।), २.१३.१६(रोहिणी : सोम रूपी शिव की पत्नी, बुध – माता - सोमात्मकस्य देवस्य महादेवस्य सूरिभिः।। दयिता रोहिणी प्रोक्ता बुधश्चैव शरीरजः।।), वायु १.२.८(रोहिणी व चन्द्रमा - पुत्र?), २७.५६ (महादेव की अष्टम मूर्ति चन्द्रमा व उसकी पत्नी रोहिणी से बुध पुत्र का उल्लेख- नाम्नाऽष्टमस्य महतस्तनुर्या चन्द्रमाः स्मृतः।पत्नी तु रोहिणी तस्य पुत्रश्चास्य बुधः स्मृतः ।। ), ५२.७२(ग्रहों में बुध ग्रह के रथ के स्वरूप का कथन - तोयतेजोमयः शुभ्रः सोमपुत्रस्य वै रथः। युक्तो हयैः पिशङ्गैस्तु अष्टाभिर्वातरंहसैः ।।..), ५३.३१(नारायण के बुध ग्रह होने का उल्लेख- नारायणं बुधं प्राहुर्देवं ज्ञानविदो विदुः ।।), ५३.४७(सूर्य की दक्षिण रश्मि विश्वकर्मा द्वारा बुध ग्रह के वर्धन का उल्लेख - दक्षिणे विश्वकर्मा तु रश्मिर्वर्द्धयते बुधम् ।।), ५३.८१(त्विषि – पुत्र - बुधो मनोहरश्चैव त्विषिपुत्रस्तु स स्मृतः ।।), ६६.२२/२.५.२२(सोम नामक वसु व उसकी पत्नी रोहिणी के २ पुत्रों में से एक-सोमस्य भगवान् वर्चा बुधश्च ग्रहबोधनः।रोहिण्यां तौ समुत्पन्नौ त्रिषु लोकेषु विश्रुतौ ।।), ८६.१५/२.२४.१५(वेगवान् - पुत्र, तृणबिन्दु - पिता, मरुत्त वंश-बुधो वेगवतः पुत्र स्तृणबिन्दुर्बुधात्मजः।), ९०.४३(तारा व चन्द्रमा से बुध के जन्म का वृत्तान्त), १००.१५/२.३८.१५(सुतपा गण के २० देवों में से एक), १०१.१३२/२.३९.१३२(तारा ग्रहों में बुध के सबसे नीचे विचरण का उल्लेख - ताराग्रहाणां सर्व्वेषामधस्ताच्चरते बुधः।तस्योर्द्ध्वञ्चरते शुक्रस्तस्मादूर्द्ध्वं च लोहितः ।। ), विष्णु १.८.११(महादेव नामक अष्टम रुद्र व रोहिणी पत्नी से बुध के जन्म का उल्लेख - स्कन्दः सर्गोऽथ सन्तानो बुधश्चानुक्रमात्सुताः ॥), ४.१.४५(वेगवान् - पुत्र, तृणबिन्दु – पिता - वेगवतो बुधः । ततश्च तृणबिंदुः ), ४.६(तारा व चन्द्रमा से बुध के जन्म की कथा), शिव २.५.३६.१०(बुध का शंखचूड - सेनानी घटपृष्ठ से युद्ध - बुधश्च घटपृष्ठेन रक्ताक्षेण शनैश्चरः ।।), स्कन्द १.२.१३.१६४(शतरुद्रिय प्रसंग में बुध द्वारा शङ्खेश्वर लिङ्ग की कनिष्ठ नाम से पूजा - शंखलिंगं बुधो नाम कनिष्ठमिति संजपन्॥), ४.१.१५.४६(तारा से बुध की उत्पत्ति की कथा , बुध द्वारा बुधेश्वर लिङ्ग की स्थापना व शिव स्तुति से ग्रह लोक की प्राप्ति - रौहिणेय महाभाग सौम्यसौम्यवचोनिधे ।। नक्षत्रलोकादुपरि तव लोको भविष्यति ।।), ६.२५२.३६(चातुर्मास में बुध की अपामार्ग में स्थिति का उल्लेख - खदिरो भूमिपुत्रेण अपामार्गो बुधेन च ॥), ७.१.४६(बुधेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य - तं संपूज्य विधानेन सोमपुत्रप्रतिष्ठितम्॥ सौम्याष्टम्यां विशेषेण राजसूयफलं लभेत् ॥), हरिवंश १.२५(चन्द्रमा व तारा से बुध की उत्पत्ति), ३.३६.५८(सोम - पुत्र वर्चा से बुध की साम्यता - सोमस्य पुत्रो रोहिण्यां जज्ञे वर्चा महाप्रभः ।। उदयन्नेव भगवान्वर्चस्वी येन जायते ।।), वा.रामायण ६.१०२.३२(राम - रावण युद्ध में राम रूपी चन्द्र को रावण रूपी राहु से ग्रस्त होता देख बुध ग्रह के अहितकारक होने का उल्लेख - रामचन्द्रमसं दृष्ट्वा ग्रस्तं रावणराहुणा।..समाक्रम्य बुधस्तस्थौ प्रजानामहितावहः।), लक्ष्मीनारायण १.७९.२९(सोम व तारा से बुध के जन्म का वृत्तान्त, बुध व इला से पुरूरवा की उत्पत्ति - बुधस्येलाख्यपत्न्यां तु पुत्रः पुरुरवा ह्यभूत् ।), १.४४६.४९(छाया तारा से बुध के जन्म का कथन- मूलां तारां ददौ देवगुरवेऽन्यां ततस्तु ते ।। प्राहुस्तारे! त्यज गर्भं पक्वं त्वस्मत्प्रभावतः ।), १.४४६.८९(बुध व चित्रा के वंशजों का कथन - स एव नन्दनवने चित्रां प्राप्य सतीं प्रियाम् ।..तत्पुत्रस्त्वभवच्चैत्रः सप्तद्वीपक्षितीश्वरः ।। ) budhaबुध्न ब्रह्माण्ड २.३.७.१३४(खशा व कश्यप के राक्षस पुत्रों में से एक), वायु ६९.१६६/२.८.१६०(खशा व कश्यप के राक्षस पुत्रों में से एक), बुभुक्षा लन १.४१२.८(वर्णसंकर की ४ पुत्रियों में से एक, दुःसह की ४ पत्नियों में से एक, इन्द्र द्वारा दुर्वासा से सम्पद्हीनता का शाप प्राप्त करने पर शची के बुभुक्षाग्रस्त होने का वृत्तान्त ) bubhukshaa बृहच्छर लन २.१९२.१८(श्रीहरि द्वारा बृहच्छर नृप की नगरी धीवरा में आगमन आदि का कथन ) बृहच्छुक्र वायु ३१.९(त्विषिमान् गण के देवों में से एक ) बृहच्छ्लोक भागवत ६.१८.८(वामन व कीर्ति - पुत्र, सौभगादि - पिता, अदिति वंश ) brihachchhloka बृहत् ब्रह्माण्ड १.२.१३.९६(दीप्तिमान्? गण के १२ देवों में से एक), भागवत ३.१२.४२(ब्रह्मचारी की ४ वृत्तियों में से एक, द्र. टीका), मत्स्य २९०.४(७वें कल्प की बृहत् संज्ञा), वायु १.२१.६८/२१.७४(२८वें कल्प का नाम), ५३.५९(बृहस्पति ग्रह के बृहद् स्थान का उल्लेख), ५३.६४(स्वर्भानु के बृहत् तमोमय स्थान का कथन), ६५.७८/२.४.७८(वरूत्री के ब्रह्मिष्ठ पुत्रों में से एक), ६६.६/२.५.६(ब्रह्मा के दक्षिण मुख से सृष्ट मन्त्र शरीर वाले जय संज्ञक देवों में से एक), ६७.५/२.६.५(ब्रह्मा के मुख से सृष्ट मन्त्रशरीरों? में से एक), स्कन्द ७.१.१०५.४६(सप्तम कल्प का नाम ) brihat बृहत्- नारद १.५०.३७(बार्हती : पितरों की सात मूर्च्छनाओं में से एक), पद्म १.४०.९८(मरुत नाम), ब्रह्माण्ड १.२.३६.३५(बृहद्वपु : सत्य संज्ञक गण के १२ देवों में से एक), २.३.१.७९(बृहङ्गिरा : वरत्री के ब्रह्मिष्ठ दैत्य पुत्रों में से एक), २.३.७.१३४(बृहद्-जिह्वा : खशा व कश्यप के राक्षस पुत्रों में से एक), ३.४.१.६५ (बृहद्यश : प्रथम सावर्णि मनु के ९ पुत्रों में से एक), ३.४.२१.८४ (बृहन्माय : भण्डासुर के सेनापति पुत्रों में से एक), ३.४.२६.४९(बृहन्माय : भण्डासुर के सेनापति पुत्रों में से एक), भागवत ९.१२.९(बृहद्रण : बृहद्बल - पुत्र, उरुक्रिय - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक), मत्स्य ४८.१००(बृहत्कर्मा : भद्ररथ - पुत्र, बृहद्भानु - पिता), ४८.१०७(बृहत्पुत्र : विजय - पुत्र, बृहद्रथ - पिता, अङ्ग वंश), ४९.४७(बृहदनु : अजमीढ व भूमिनी - पुत्र, बृहन्त - पिता), ४९.४७(अजमीढ वंश में बृहदनु, बृहन्त, बृहन्मना, बृहद्धनु, बृहदिषु का क्रमिक उल्लेख), १४५.९५(बृहद्वक्षा : सत्य से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषिकों में से एक), १४५.१०५(बृहच्छुक्ल : ३३ आङ्गिरस ऋषियों में से एक), १७१.४५(धर्म - पत्नी साध्या का बृहत्कान्ति विशेषण), १७१.५४(बृहन्त व बृहद्रूप : मरुत्वती से उत्पन्न मरुद्गणों में से २), वायु २१.७६/१.२१.६८(२८वें कल्प का नाम), ९६.२४६/२.३४.२४६(बृहदुच्छ : बृहदुच्छ शौनेय की कन्या बृहती सम्बन्धी कथन), ९९.१७१/२.३७.१७१(बृहद्विष्णु : बृहद्वसु - पुत्र, बृहत्कर्मा? - पिता), ९९.२८१/२.३७.२७७( बृहत्क्षय : बृहद्रथ - पुत्र, क्षय - पिता, इक्ष्वाकु वंश), विष्णु ४.१८.२२(अङ्ग वंश में भद्ररथ के वंशजों के रूप में बृहद्रथ, बृहत्कर्मा, बृहद्भानु, बृहन्मना व जयद्रथ का क्रमिक उल्लेख), ४.२२.२ (बृहत्क्षण : बृहद्बल - पुत्र, उरुक्षय - पिता, इक्ष्वाकु वंश )स्दiज्ष्न्, Brihat This page was last updated on 02/25/23. |